एक बार बादशाह अकबर और बीरबल शिकार पर गए । शिकार करते समय बादशाह की उंगली मे तीर की एक नोक से चोट लग गई । और उनकी थोड़ी से उंगली कट गई व उनकी उंगली से खून भी निकलने लगा था । यह देखकर बीरबल बोले – ” ईश्वर जो करता हैं ” अच्छा ही करता हैं ।
तभी बीरबल की इस बात से अकबर को बहुत ही बुरा लगा । ” मगर उस समय वह कुछ ना बोले ” । और वापस दरबार मे आकर बादशाह अकबर नें बीरबल की गैर मौजूदगी में यह बात दरबारियों को बताई । अकबर की बात सुनकर बीरबल से जलने वालों ने बादशाह अकबर को खूब भड़काया । और सभी दरबारीयों मे से एक बोला कि ”” लो जी , ये भी कोई बात हुई । जहाँपनाह की उंगली कटने से उनको इतनी पीड़ा पहुंची और उस बात का भी बीरबल ने मजाक बना दिया ।
दूसरा बोला – जहाँपनाह आपने बीरबल को बहुत सिर पर चढ़ा लिया हैं । वह भूल गया हैं कि सम्राट का सम्मान कैसे किया जाता हैं । वह तो बस हर समय मजाक करता रहता हैं । ” हाँ ठीक हैं ” उसे करना चाहिए था कि महाराज की उंगली कटने पर उनका इलाज करवाता । मगर उसने तो उल्टे आपका मजाक उड़ाया ।
दरबारियों की इस तरह चापलूसी भरी बातें सुनकर बादशाह अकबर बहुत बुरा लगा । और उनका दिमाग भी घूम गया । उन्हे लगा कि उन्होंने बीरबल को बहुत अधिक सिर पर चढ़ा लिया हैं । जिसकी वजह से वह ज्यादा फायदा उठा रहा हैं । और अपना कर्तव्य भी भूल गया हैं ।
तब बादशाह अकबर नें उन्ही चापलूस दरबारियों से पूछा कि इस मौके पर क्या किया जाए । जिससे बीरबल की अक्ल दुरस्त हो जाए ??
तब दरबारी बोले ” जहाँपनाह उसे दरबार से बर्खास्त कर दो “। यहाँ से उसे निकाल दो । और आपके अपमान के बदले उसे कठोर सजा दी जाए ।
फिर एक दरबारी बोला – कि मेरी राय से तो उसे छः महीने के लिए कालकोटरी मे डाल दिया जाए ।
सबकी सलाह सुनकर अगले दिन बादशाह अकबर दरबार मे पधारे । उस दिन बीरबल भी दरबार में ही था । तभी अकबर नें सबसे पहले सेनानायक को बुलाया । सेना नायक के हाजिर होने पर उन्होंने आदेश दिया । कि बीरबल को बंदी बनाकर कारगर मे डाल दिया जाए । बादशाह अकबर के इस आदेश से चापलूस दरबारियों को छोड़कर सभी हक्के – बक्के रह गए ।
स्वयं बीरबल भी हैरान हो गए । मगर शीघ्र ही उन्हे समझ मे आ गया । कि कल उनकी गैर हाजरी में उनसे जलने वाले दरबारियों नें किसी बात पर महाराज के कान भर दिए हैं । जिससे बादशाह मुझसे नाराज हैं । अतः बिना कारण पूछे ही बिरबल सेना नायक के साथ चलें गए । सेना नायक नें उन्हे कारगार में डाल दिया । इससे बादशाह अकबर और चापलूस दरबारी संतुष्ट हो गए । इसी तरह कुछ दिन गुजर गए ।
तभी एक दिन बादशाह अकबर का मन शिकार पर जाने का हुआ । मगर वह किसे लेकर जाए यह उनकी समझ मे नहीं आया । काफी सोच विचार के बाद उन्होंने अकेले ही शिकार पर जाने का निर्णय लिया ।
शिकार पर निकलें बादशाह अकबर अचानक रास्ता भटककर आदिवासियों की एक एसी बस्ती में जा पहुंचे जो नरभक्षी थें । तभी आदिवासियों नें बादशाह को पकड़कर एक खम्भे से बांध दिया । और उनके सरदार ने बादशाह की बली चढ़ाने के आदेश दिया । यह घोषणा होतें ही सभी आदिवासी खुशी से झूम उठे और ढोल – नगाड़े बजा बजाकर नाचने लगे । रात होते ही अकबर को देवता की मूर्ति के सामने लाकर बांध दिया । फिर आग जलाकर सभी अकबर के आगे पीछे नाचने लगे ।
अचानक आदिवासियों का पुजारी बलि का निरक्षण करने आ पहुँचा । तभी बादशाह अकबर की कटी हुई उंगली देखकर उस पुजारी ने तुरंत नृत्य और संगीत रुकवा दिया । और बोला । इसकी बलि नहीं चढ़ाई जा सकतीं । यह व्यक्ति खंडित हैं । इसे छोड़ दिया जाए “देवता किसी घायल या रोगी की बलि स्वीकार कभी नहीं कर सकतें” फलस्वरूप आदिवासियों नें बादशाह अकबर को छोड़ दिया । तब कहीं जाकर उनकी जान में जान आई । उन
आदिवासियों से चुंगल से छूटते ही बादशाह ने अपना घोड़ा संभाला और फटाफट राजधानी की ओर उस घोड़े को दौड़ दिया । जब वह आदिवासियों की बस्ती से काफी दूर निकल आए । तो सोचने लगे कि बीरबल ने ठीक ही कहा था । ” कि ईश्वर जो भी करता हैं अच्छा ही करता हैं ” यदि उस दिन तीर से हमारी उंगली घायल ना हुई होती तो आज ये नरभक्षी हमारी बलि चढ़ा देते ।
अब फटाफट अकबर राजधानी पहुँच गए । और आते ही सेनानायक को आदेश दिया कि बीरबल को तुरंत रिहा करके सम्मान सहित हमारे पास लाया जाए ।
तुरंत आज्ञा का पालन किया गया । बीरबल के आते ही बादशाह अकबर बोले कि बीरबल हमें क्षमा कर दो । हमने तुम्हें बेवजह ही कारगार मे डलवाया । दरअसल उस दिन तुमने कहा था कि ईश्वर जो करता हैं अच्छा ही करता हैं । और उस दिन तुम्हारी बात पर हमें गुस्सा आ गया था । हमें लगा कि तुम हमारा मजाक उड़ा रहे हो । मगर आज एक एसी घटना घटी कि हमें तुम्हारी बात पूरी तरह से सत्य लगी ।
आज ऐसा क्या हुआ जहाँपनाह ?? बीरबल ने आश्चर्य से पूछा । तब अकबर नें उसे अपने शिकार पर जाने और वहाँ आदिवासियों के बीच जो घटना घटी उसका पूरा विवरण बीरबल को बताया । और कहा ” तब कहीं जाकर हमे तुम्हारी बात की गहराई का बोध हुआ । कि ईश्वर जो भी करते हैं । अच्छा ही करते हैं । ” मगर ” ??????
मगर क्या महाराज ?? बीरबल नें पूछा । मगर ये बीरबल कि एक बात हमारी समझ मे नहीं आ रही । कि हमें घायल करवा कर ईश्वर ने हमारे लिए ये अच्छा किया कि हम बलि चढ़ाए जाने से बच गए । मगर तुम्हें ईश्वर ने जेल मे डलवाकर तुम्हारा क्या भला किया । ??
बीरबल बोले – जहाँपनाह मुझे कारगार मे डलवाकर एक प्रकार से उन आदिवासियों से ईश्वर ने मेरी भी रक्षा की हैं । अकबर ने पूछा वह कैसे ??
वह ऐसे जहाँपनाह – कि यदि आप मुझे जेल मे ना डलवाते तो, कल शिकार पर आप मुझे भी अपने साथ ही लेकर जरूर जाते । ऐसे में हम दोनों ही रास्ता भटकर उन आदिवासियों द्वारा गिरफ्तार कर लिए जाते । और बलि चढ़ाते समय आप तो उंगली कटने की वजह से छोड़ दिए जाते । मगर मेरी तो वहाँ बलि अवश्य ही दी जाती । और मेरी मौत हो जाती ।
वाह – वाह । सच में बीरबल यह सत्य ही हैं । ईश्वर जो भी करता हैं अच्छा ही करता हैं ।
यह जानकर कि बीरबल की चतुराई से न केवल बादशाह अकबर की बल्कि बीरबल के भी प्राण बच गए । सभी दरबारी बेहद खुश हो गए । मगर बीरबल से चिढ़ने वाले दरबारी मन मानकर रह गए कि बीरबल को जेल मे सड़ाने की उनकी इच्छा मन मे ही रह गई ।
आपका धन्यवाद ।