
चंद्रगुप्त मौर्य का इतिहास » History Of Chandragupta Maurya
» इतिहास के पन्नों पर अगर और किया जाए चन्द्रगुप्त कअ नाम स्वर्ण अक्षरो मे अंकित है। इतिहास की चर्चा हो और चन्द्रगुप्त मौर्य कअ नाम न लिया जाए , ये तो हो ही नही सकता है। जी हाँ, तेजस्वी प्रतापी राजा चंद्रगुप्त मौर्य की कहानी को हर कोई सुनना और जानना चाहता है । बचपन मे माँ से ही पीड़ा सहन करने वाले चन्द्रगुप्त मौर्य ने नंदो खात्मा कर दिया था।
» इनकी बहादुरी की वजह से आज भी उन्हे हर कोई पढ़ना या सुनना पसंद करता है । तो आइए जानते हैं की चन्द्रगुप्त मौर्य की कहानी क्या है ? चन्द्रगुप्त मौर्य कहानी जानने के लिए सबसे पहले उनके बचपन मे जाना होगा। आखिर कब कैसे और किन – किन हालातों मे जन्म हुआ? साथ ही बचपन मे किन-किन पीड़ा कअ सामना उन्हे करना पड़ा था, फिर कैसे वो तेजस्वी और पराक्रमी बने?
» तो चलिए आज हम आपको इन सारे सवालों कअ जवाब देने की कोशिश कर रहे है, लेकिन इसके लिए आपको कहानी पूरी पढ़नी पड़ेगी ।
चन्द्रगुप्त मौर्य की कहानी का आरंभ :-
» चन्द्रगुप्त मौर्य का जन्म 340 ई . पूर्व मे मौरिय अथवा मौर्य वंश के क्षत्रिय कुल मे हुआ था। बता दें की चन्द्रगुप्त मौर्य प्रथम सम्राट होने के साथ ही पूरे देश मे राज करने वाले भी पहले ही सम्राट थे। इनका बचपन जहाँ एक तरफ बहुत ही गरीबी मे बीता तो वहीं दूसरी तरह बहुत ही के साये से भी दूर थे ,। यानि जन्म से पहले ही पिता की मौत हो गई थी, तो जन्म के कुछ सालों बाद माता की मौत हो गई थी , जिसकी वजह से इन्हे न जाने कितनी असहनीय पीड़ा से गुजरना पड़ा था, लेकिन इन्होंने कभी हार नही मानी बल्कि अपने पिता और माता के प्रतिशोध के लिए हमेशा खड़े थे ।
» जब चंद्र 10 साल के थे तो उनकी मुलाकात चाणक्य से हुई। माँ की मौत के बाद चाणक्य ने ही इनका पालन पोषण किया था। बाद मे ये नंदों के सेना मे शामिल हो गए थे, लेकिन वहाँ इनकी सेनापति से नही पटी तो जान बचा के भाग गए । चन्द्रगुप्त के पीछे सेनापति ने सेनाओ को भेजा था, लेकिन उन्हे कोई नही पकड़ पाया , जिसके बाद से ही उन्होंने नंदों कअ विनाश करने की ठान ली थी।
चन्द्रगुप्त के साम्राज्य पर हर भारतीय को गर्व
» इनका साम्राज्य बहुत ही बड़ा था , जिसकी वहज से आज भी भारतीय को इनपर गर्व है । बात दें की चन्द्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य बंगाल से लेकर अफगानिस्तान और बलोचिस्तान तक था । हालांकि , ये बात और है की भारत का बंटवारा एक बार नही कई बार हो चुका है, यही वजह है की आज भारत से कई देश अलग हो चुके हैं। लेकिन चंद्र ने अपनी लोकप्रियता और पराक्रम से बहुत दूर – दूर तक राज किया था।
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चाणक्य और चन्द्रगुप्त मौर्य की कहानी
» दरअसल , चाणक्य नन्द वंश का विनाश करना चाहते थे, लेकिन उनके पास बुद्धि तो थी, लेकिन एक पराक्रमी योद्धा की तलाश थी, जो की उन्हे चन्द्रगुप्त मौर्य मे दिखाइ दिया । तो वहीं पर चंद्र को भी एक बुद्धिमान गुरु की आवश्यकता थी , जो उन्हे समय – समय पर उचित मार्गदर्शन दे सके । इसीलिए दोनों को ही एक दूसरे की जरूरत थी , ऐसे मे दोनों ने एक साठ मिलकर नन्द वंश का विनाश करने कअ बीड़ा उठाया था। बता दें की दोनों ने मिलकर सेना तैयार करने के साथ ही साथ ही मगध पर आक्रमण कर दिया था, लेकिन इस युद्ध मे उन्हे असफलता हाथ लगी थी, जिसकी वजह से दोनों ही वहाँ से भाग निकले थे।
मगध पर रणनीति के साथ चन्द्रगुप्त मौर्य ने किया था आक्रमण
» हार जाने के बाद चन्द्रगुप्त मौर्य ने के रणनीति तैयार की । जिसके बाद वो धीरे- धीरे मगध मे प्रवेश करने लगे थे । बता दें की अपना विजय अभियान शुरू चंद्र ने बार्डर से किया था, जिसके बाद रास्ते मे आने वाले कई जिले तो कई राज्यो की जीतते हुए मगध पर आक्रमण कर दिया था। बता दें की चन्द्रगुप्त मौर्य ने रास्ते मे पड़ने वाले हर राज्य को जीता था, जसकी वजह से कई राज्यो से उन्हे खूब समर्थन भी मिला था। ऐसे मे इनकी शक्ति और भी मजबूत हो गई थी, । चंद्र ने बाद मे मगध पर अटैक किया, तब नन्द वहाँ से भाग निकला लेकिन वहाँ पर राज चंद्र करने लगा , धीरे – धीरे नन्द की तलाश जारी थी, बाद मे चंद्र नई उसे भी मार डाला ।
कैसे हुआ था चन्द्रगुप्त मौर्य का विवाह
» बता दें सिकंदर के सेनापति सेल्यूकस ने भारत पर आक्रमण किया था, लेकिन इस युद्ध मे करारी शिकस्त मिली थी । इतना ही नही, उसे चंद्र के साथ अपमान जनक संधि भी करनी पड़ी थी। चंद्र को उपहार मे उसे अपनी बेटी हेलेन देनी पड़ी थी , जिसके साथ चन्द्रगुप्त का विवाह हुआ था।
कैसे हुई थी चन्द्रगुप्त की मृत्यु
» विवाह करने के बाद चंद्र कर्नाटक की तरफ चले गए , जहाँ उनकी मृत्यु 298 ई. पूर्व मे हो गई थी । बता दें की चन्द्रगुप्त केवल 42 साल की उम्र मे इस दुनिया कअ छोड़ गए थे ।
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