
महाशिवरात्रि की 4 पौराणिक कथाएँ – Story Of Mahashivratri
कहानी – 1. शिव और बैल गाड़ी
» यह कुछ 300 साल पहले की बात है। कर्नाटक के सदुर दक्षिण क्षेत्र मे अपनी बूढ़ी माँ के साथ एक योगी रहते थे । उनकी माँ काशी जाना चाहती थी ताकि वह विश्वनाथ जाकर शिव की गोद मे प्राण त्याग सके । इस के अलावा उसने अपने जीवन मे अपने बेटे से कभी कुछ नही मांगा था। उसने कहा: मुझे काशी ले चलो । मै बूढ़ी हो रही हूँ । मै वहीं जा के मरना चाहती हूँ।
» योगी ने अपनी बुद्धि माँ के साथ दक्षिण कर्नाटक के जंगलों से होते हुए काशी के लिए एक लंबी यात्रा शुरू की। वृद्ध होने के कारण , उनकी माँ का स्वास्थ्य बिगड़ गया। तो उन्होंने माँ को कंधे पर उठा लिया और जाहीर तौर पर कुछ समय पश्चात वह कमजोर महसूस करने लगा।
» उसके पास शिव से याचना की, हे शिव मुझे मेरे इस प्रयास मे विफल मत होने देना, बस यह एक चीज है जो मेरी माँ ने मुझे से माँगा है, कृपया मुझे इसे पूरा करने दें। मै इन्हे काशी ले जाना चाहता हूँ। हम वहाँ सिर्फ आप ही के लिए आ रहे हैं। कृपया मुझे ताकत दें।
» तब जैसे ही उन्होंने चलना शुरू किया , तो पीछे से एक घंटी की आवाज सुनाई दी, जैसे कोई बैलगाड़ी दिखाई दी, जिसे एक बैल खींच रहा था, जो थोड़ा अजीब था, क्योंकि एक बैल वाली बैलगाड़ी छोटे रास्तों के लिए होती है, जब सफर लंबा और जंगली इलाके से होते हुए हो तो हमेशा दो बैल ही गाड़ी को खींचते हैं।
» पर जब आप थके हों तो ऐसी बारीकियों को किसे परवाह । गाड़ी नजदीक आयी , पर वे चालक को नहीं देख पाए क्योंकि चालक लबादे मे था और बाहर धुंध भी थी।
» मेरी माँ बीमार है, क्या हम आप की खाली गाड़ी मे यात्रा कर सकते है, उन्होंने कहा। अंदर बैठे व्यक्ति ने सिर हिला के हाँ कहा। वो दोनों बैलगाड़ी मे बैठ गए और बैलगाड़ी आगे चलने लगी । कुछ समय बाद योगी का ध्यान इस और गया की जंगली रास्ता होने के बावजूद भी बैलगाड़ी बहुत आसानि से आगे बढ़ रही थी। तब उन्होंने नीचे देखा और पाया की पहिये घूम नही रहे हैं। वे रुके हुए थे । पर गाड़ी आगे बढ़ रही थी ।
» तब उन्होंने बैल बैठा हुआ था पर बैलगाड़ी चल रही थी । तब उन्होंने चालक की ओर देखा और पाया की वहाँ सिर्फ लबादा ही था । उसने अपनी माँ की ओर देखा । माँ ने कहा , अरे पागल हम पहुँच गए , अब कहीं और जाने की जरूरत नहीं हैं , यही वो जगह है, अब मुझे जाने दो । इतना कह के माँ ने शरीर छोड़ दिया । बैल , बैलगाड़ी और चालक सब विलीन हो गए ।
» योगी अपने गाँव लौट आया । लोगों ने सोचा , यह इतनी जल्दी लौट आया है, यह उसे काशी नही ले गया , उन्होंने उसे पुछा तुम अपनी माँ को कहाँ छोड़ आए । उसने उत्तर दिया, हमे वहाँ जाना नही पड़ा, शिव खुद आए थे हमारे लिए । क्या बकवास है , उन्होंने कहा। योगी ने उत्तर दिया , मुझे फर्क नही पड़ता की आप क्या सोचते हैं, वे आए थे हमारे लिए और यही सच है, मेरा जीवन ज्योतिर्मय हो गया है, यह मै अपने अंतर मे जानता हूँ।
» अगर आप नही मानते तो यह आप जाने । तब उन्होंने पुछा ठीक है, हमे कुछ ऐसा दिखाओ , की हम माने की तुमने सच मे शिव को देखा है, और वे सच मे तुम्हारे लिए सच मे शिव को देखा है, और वे सच मे तुम्हारे लिए आए थे । योगी ने कहा, मै नही जानता , मैंने उन्हे नही देखा । मुझे सिर्फ एक लबादा दिखा , वहाँ कोई चेहरा नही था । वहाँ कुछ नही था । वह खाली था ।
» अचानक सब ने देखा के वह खुद वहाँ नही थे , सिर्फ उनके कपड़े ही दिखायी पड़ रहे थे । वे दक्षिण भारत के महान संत बने । जहाँ भी वह जाते लोग उन्हे बिना चेहरे वाले योगी के रूप मे लोग जानते थे।
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कहानी – 2 .मल्ला – एक शिव भक्त और एक चोर
मै आपको एक ऐसे योगी के बारे मे बता रहा हूँ , जो उस जगह के काफी करीब रहा , जहाँ मेरा जन्म हुआ था । मैंने उनके बारे मे सुना था और उस घटना के बारे मे भी जो वहाँ हुई थी , पर युवावस्था मे मैंने इस ओर ज्यादा ध्यान नही दिया । उसने मुझे काफी प्रेरित किया , पर मैंने उस समय इसे अधिक महत्व नही दिया ।
वर्तमान मे नंजनगुड के नाम से प्रसिद्ध शहर की सीमा पर, मैसूर से करीब 16 किलोमीटर दूर तक एक योगी रहते थे । उनका नाम था , मल्ला । वे किसी परंपरा से संबंध नही रखते थे और ना ही उन्हे कोई पूजा पाठ की औपचारिक विधि ज्ञात थी। परंतु बचपन से ही, जब भी वे अपनी आखे बंद करते तो उन्हे शिव की तस्वीर दिखाई देती । शायद मै भी उन्ही के जाल मे फंसा हुआ हूँ। हम उनकी तलाश नहीं करते ।
अभियान के कारण शायद किसी की भी तलाश नही करते पर उनके जाल मे फंस अवश्य जाते हैं। शिव एक शिकारी थे । वे सिर्फ़ जानवरों को ही अपने जाल मे नही फँसाते थे । अपितु इंसानो को भी अपने जाल मे फंसा लेते थे । यह उन्ही मे से एक और था ।
मल्ला , शिव के सिवा और कुछ नही जानता था । उसने कोई विशेष कौशल भी अर्जित नही किया था और वह जंगली इंसान बन गया था । यह तो उसे कभी विचार ही नही आया की किसी को भी रोक कर उससे अपनी जरूरत के लिए कुछ भी छीन लेना गलत भी हो सकता है,। तो वो ऐसा ही करता था और एक डाकू के रूप मे प्रसिद्ध हो गया था।
वह जंगल के उस रास्ते का नियमित डाकू बन गया जिसे लोग सामान्य तौर पर इस्तेमाल करते थे। वह रास्ता जहाँ वो ।, राहदारी , वसूलता था, उस जगह का नाम पड़ा कल्लाणमुलाई , जिसका मतलब है चोर का कोना । शुरू मे लोगों ने उसे धिक्कारा , पर साल के अंत मे लोगों से इकट्ठा किये एक एक पैसे को वो महा शिव रात्री मनाने मे खर्च कर देता था। वह एक बड़ा भोज आयोजित करता ।
कुछ सालों बाद लोगों ने उसे एक महान योगी के रूप मे पहचाना और स्वेच्छा से योगदान करने लगा । और जो ऐसा ना करते , उन्हे योगदान के लिए प्रोत्साहित करने का भी, उसे कोई पछतावा नही था।
कुछ सालों बाद , दो योगी जो आपस मे भाई थे , इस रास्ते से गुजर रहे थे । उन्होंने इस आदमी को देखा जो डाकू तो था ।, पर एक महान योगी भी था । उन्होंने कहा तुम्हारा भक्ति भाव अद्भुत है, पर तुम्हारे तौर तरीकों से लोगों को कष्ट होता है । उसने कहा , मै यह शिव के लिए करता हूँ ,
इसमे दिक्कत क्या है? उन्होंने समझाया , अपने साथ अलग ले गए और कुछ पद्धतियों से गुजारा और उस स्थान का नाम कल्लाणमुलाई से बदल कर मल्लाणमुलाई के नाम से ही जाना जाता है । औरे जो महाशिवरात्रि वो मानते थे वो आज एक विशाल संस्थान के रूप मे विकसित हो गया है।
डकैती छोड़ के इन योगियों के साथ बैठने के करीब डेढ़ साल बाद ही उन्होंने महा समाधि प्राप्त कर ली। मल्ला को इस प्रकार मुक्त करवाने के बाद दोनों योगियों ने भी उसी दिन अपने शरीर छोड़ दिया । कबीनी नदी के किनारे इन लोगों के लिए एक खूबसूरत तीर्थस्थान निर्मित है, जिसे आज भी मल्लाणमुलाई के नाम से जाना जाता है।
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जगन्नाथ जी की पूरी कहानी » Story Of Jagannath Ji । Jagannath Ji Ki Puri Kahani । Hindi Kahani
कहानी – 3. कैसे बने कुबेर शिव के महानतम भक्त
सद्गुरु :- कुबेर यक्षों के राजा थे। यक्ष बीच का जीवन होते हैं, वो ना यहाँ के जीवन मे होते हैं , और ना ही वो पूरी तरह से , जीवन के बाद वाली स्थिति मे होते हैं। कहानी कुछ इस तरह है की रावण ने कुबेर को लंका से निकल दिया और कुबेर को मुख्यभूमि की और पलायन करना पड़ा । अपना राज्य और प्रजा को खोने की निराशा मे, उसने शिव की पूजा करना शुरू की- और एक शिव भक्त बन गया ।
शिव जी ने दया भाव दिखते हुए , उसे एक अन्य राज्य और संसार का सारा धन दे दिया , इस तरह कुबेर संसार का सबसे अमीर व्यक्ति बन गया । धन मतलब कुबेर – यह कुछ इस प्रकार देखा जाने लगा । कुबेर , शिव जी का महान भक्त बन गया , परंतु जब भक्त को यह लगने लगे कि वो सबसे महान भक्त है , तो समझ जाए के सब खोने वाला है। कुबेर को लगने लगा था की वो शिव इतना कुछ अर्पित करता है
तो वो एक महानतम भक्त है । और बेशक शिव जी ने चढ़ावे मे से विभूति के अलावा कभी कुछ नही छुआ । पर कुबेर खुद को महान समझने लगा क्योंकि वो शिव जी को इतना कुछ चढ़ावे के रूप मे भेंट करता था ।
एक दिन कुबेर शिव के पास गए और कहा , मै आप के लिए क्या कर सकता हूँ? मै आप के लिए कुछ करना चाहता हूँ। शिव जी ने कहा , तुम मेरे लिए क्या चीज की आवश्यकता ही नही है । मै ठीक हूँ। परंतु मेरा बेटा उन्होंने गणपती की ओर इशारा करते हुए कहा, ये लड़का हमेशा भूखा रहता है, इसे अच्छे से खिला दो।
यह तो अत्यंत सरल है , कह कर कुबेर गणपती को अपने साथ भोजन के लिए ले गया । उसने गणपति को खाना खिलाना शुरू किया और वो खाते गए और खाते ही गए । कुबेर ने सैकड़ों रसोइयों की व्यवस्था की और की और प्रचुर मात्रा मे खाना बनाना शुरू किया । उन्होंने यह सारा भोजन गणपति को परोसा और वे खाते रहे।
कुबेर चिंतित हो उठे और कहा , रुक जाओ , अगर तुम इतना खाओगे तो तुम्हारा पेट फट जाएगा । गणपति ने कहा, आप उसकी चिंता मत करो । देखिए मैंने एक सांप को एक कमर पेटी के रूप मे बाँध रखा है । तो आप मेरे पेट की चिंता ना करे । मुझे भूख लगी है। मुझे खाना खिलाए । आप ही ने कहा था की आप मेरी भूख मिटा सकते हैं।
कुबेर ने अपना सारा धन खर्च कर दिया । कहते हैं की कुबेर ने दूसरे लोको से भी भोजन मँगवा के गणपति को खिलाया । गणपति ने सारा भोजन खाने के बाद भी कहा , मै अभी भी भूखा हूँ , मेरा भोजन कहाँ हैं? तब कुबेर को अपने विचार के छोटेपन का एहसास हुआ
और उसने शिव के सामने झुकते हुए कहा , मै समझ गया , मेरा धन आप के सामने एक तिनके के समान भी नही हैं , जो आप ने मुझे दिया उसी का कुछ अंश आप को वापिस दे कर मैंने खुद को एक महान भक्त समझने की गलती की और इस क्षण के बाद उसके जीवन ने के अलग ही दिशा ले ली।
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कहनी – 4. अर्धनारी रूप मे शिव और भृगु महाॠषि
जब हम योग की बात करते हैं तो हम किसी व्यायाम या किसी तकनीक की बात नही कर रहे । हम इस सृष्टि के विज्ञान की बात कर रहें हैं और कैसे सृष्टि के इस अंश को इसकी परम संभावना तक ले जाया जा सकता है। हम उस विज्ञान और प्रौद्योगिकी की बात कर रहे हैं, जिससे जीवन के हर एक पहलू को उसकी अंतिम संभावना तक ले जाया जा सकता है।
जब शिव योग का संचरण और सृष्टि की संरचना की व्याख्या सप्तॠषियों से कर रहे थे , तब एक सुंदर घटना घटित हुई। सप्तॠषियों मे से एक ॠषि जो बाद मे भृगु महाॠषि के नाम से जाने गए, शिव के एक उत्साही भक्त थे । इस पहले योग प्रोग्राम मे, जो कांति सरोवर के किनारे हो रहा था,
जिसे कृपा की झील के नाम से भी जाना जाता है, पार्वती भी मौजूद थी। भृगु हमेशा की तरह सुबह जल्दी आए और वे शिव की प्रदक्षिणा करना चाहते थे। पार्वती शिव के करीब बैठी थी , परंतु भृगु ने दोनों के बीच से होते हुए शिव की परिक्रमा पूरी की । क्योंकि वो सिर्फ शिव की प्रदक्षीणा करना चाहते थे, पार्वती की नही ।
शिव इससे खुश हुए पर पार्वती नही। उन्हे यह पसंद नही आया । उन्होंने शिव की ओर देखा । शिव जी ने कहा, थोड़ा और करीब हो जाओ , वो परिक्रमा करेगा। पार्वती और करीब आ गई । भृगु ने देखा की उसके निकलने के लिए पर्याप्त जगह नही है, तो उसने एक चूहे का रूप धारण किया और पार्वती को बाहर रखते हुए अकेले शिव जी की ही परिक्रमा पूरी की।
पार्वती क्रोधित हो गई । तो शिव ने उन्हे अपनी जंघा पर बैठा लिया । तब भृगु ने एक छोटे पंछी का रूप धारण कर के शिव जी की परिक्रमा पूरी कर ली। अब पार्वती अत्यंत क्रोधित हो चुकी थी। शिव जी ने पार्वती को खींच कर खुद का हिस्सा बना लिया । जिससे उनका आधा हिस्सा पार्वती। वे अर्धनारीश्वर बन गए।
भृगु ने यह देखा और खुद को एक मधुमक्खी के रूप में बना लिया और उनकी दाहिनी टांग का चक्कर लगा दिया। भृगु का बचकाना भक्तिभाव देख कर शिव जी खुश तो हुए पर साथ ही वे नही चाहते थे की भृगु अपनी भक्ति मे इतना खो जाए के वो प्रकृति के परम स्वभाव कों ही समझ ना पाए ।
तो वो सिद्धासन मे बैठ गए । अब भृगु के पास कोई रास्ता नही बचा था की वो सिर्फ शिव या उनके शरीर के किसी हिस्से का चक्कर लगा सकें । अगर उन्हे अब परिक्रमो करनी थी , तो दोनों सिद्धांतों , स्त्रण और पौरुष दोनों की ही करनी पड़ेगी ।
यह कहानी हमे संप्रेषित करती है की जब हम योग की बात करते हैं तो हम सभी आयामों के समावेश की बात करते हैं । यह कोई व्यायाम या प्रक्रिया नही है की जिससे आप सेहतमंद होते हैं। यह मानव जाति के परम कल्याण के बारे मे हैं , जिसमे जीवन का कोई भी पहलू , बाहर नही रखा जा सकता । यह ऐसे आयाम को छूने के बारे मे हैं, जो सारे आयामों से परे है। यह एक ऐसे तंत्र के बारे मे है ।
जिससे आप अपने पहले से मौजूद तंत्र – जैसे शरीर, मन , भावनए और ऊर्जा को परमात्मा तक जाने वाली सीढ़ी के रूप मे इस्तेमाल कर सके। यह एक ऐसी पध्दती है जिससे आप अपनी परम प्रकृति के लिए , स्वयं को पहले कदम के रूप तैयार कर सकते हैं।