
महमूद गजनवी का पूरा इतिहास • जीवन परिचय • भारत पर आक्रमण • युद्ध • मृत्यु – History Of Mahmud Ghaznavi
» महमूद गजनवी का जन्म अफगानिस्तान के गजनी मे 02 नवंबर 971 ईस्वी मे हुआ था। उसके पिता सबुक्तगिन एक तुर्क सरदार थे, जिसने गजनीं साम्राज्य की नीव रखी थी। उसकी माँ एक जबूलिस्तान के एक कुलीन परिवार की बेटी थी। महमूद बचपन से भारतवर्ष की अपार समृद्धि और धन – दौलत के विषय मे सुनता रहा था।
» उसके पिता ने एक बार हिन्दू शाही राजा जयपाल के राज्य को लूट कर प्रचुर संपत्ति प्राप्त की थी, महमूद भारत की दौलत को लूटकर मालामाल होने के स्वप्न देखा करता था। वे अपने पिता के साथ कई युद्धों मे भाग लिया । इसी प्रक्रिया के दौरान गजनी के सिंहासन पर महमूद (998-1030) बैठा। 27 वर्ष की अवस्था मे वह अपने पिता के राज्य का स्वामी बना ।
» वह अजाम का प्रथम सुल्तान माना जाता है। ,मध्ययुगीन इतिहासकारों ने मध्य एशिया के कबीलाई आक्रमणकारियों से वीरता से संघर्ष करने के कारण महमूद को इस्लाम का युद्धा माना है। इसके अलावा इस समय ईरानी संस्कृति का जो पुनर्जागरण हुआ , उसके साथ महमूद का गहरा संपर्क था।
» माना जाता है की महमूद ने न केवल तुर्क कबीलों के विरुद्ध इस्लामी राज्य की रक्षा की वरण् ईरानी संस्कृति के पुनर्जागरण मे भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । लेकिन भारत मे वह केवल एक लुटेरे के रूप मे याद किया जाता है । कहा जाता है , की महमूद ने भारत पर सत्रह बार आक्रमण किया।
» आरंभ मे उसने पेशावर और पंजाब के हिन्दू शाही शासकों के खिलाफ युद्ध किया । उसने मुल्तान के मुस्लिम शासकों के विरुद्ध भी युद्ध किया क्योंकि वे इस्लाम के उस संप्रदाय को मानने वाले थे जिनका महमूद कट्टर विरोधी था। हिन्दूशाही राज्य पंजाब से लेकर आधुनिक अफगानिस्तान तक फैला हुआ था और उनके शासक गजनी मे एक स्वतंत्र शक्तिशाली राज्य से उत्पन्न होने वाले खतरों को बखूबी समझते थे।
» हिन्दूशाही शासक जयपाल ने समानी शासन के अंतर्गत भूतपर्व गवर्नर के पुत्र के साथ मिलकर गजनी पर चढ़ाई भी की थी, लेकिन उसे हार का सामना करना पड़ा। उसने अगले वर्ष फिर चढ़ाई की और फिर पराजित हुआ। इन लड़ाइयों मे यूवराज के रूप मे महमूद ने सक्रिय भाग लिया था ।
महमूद गजनवी का जीवन परिचय
• नाम – महमूद गजनवी / गजनी
• उपनाम – जबूली का महमूद
• पिता का नाम – सुबुक्तगीन
• जन्म तिथि – 2 नवंबर 971 ईस्वी
• जन्म स्थान – गजनी ( अफगानिस्तान )
• मृत्यु – 30 अप्रैल 1030
• भाई का नाम – इस्माइल
• धर्म – सुन्नी मुसलमान
• शासकाध्यक्ष – 998
• राजतिलक – 6 1002 ईस्वी मे
• सुल्तान की उपाधि धारण करने वाला – महमूद पहला शासक
• भारत पर आक्रमण किये – कुल 17 आक्रमण
• भारत पर आक्रमण का मुख्य उद्देश्य – भारत की धन संपदा को लूटना
• खलीफा से सम्मान उपाधि प्राप्त करने के बाद शपथ ली – भारत पर प्रत्येक वर्ष आक्रमण करने की
• दरबारी इतिहासकार – उत्बी
• प्रथम आक्रमण – 1000 ईस्वी मे सीमावर्ती नगरों पर
• अंतिम आक्रमण – जाटों और खोंखरों को दंड देने हेतु
• उपाधियाँ – भारत का पहला सुल्तान , यमीन – उद – दौला, अमीन – उल – मिल्लत
महमूद गजनवी का जन्म एवं प्रारम्भिक जीवन
» महमूद गजनवी कअ पूरा नाम ‘ यामीन उद दौलाह अब्दुल कासिम महमूद इब्न सुबुक्तगीन था, महमूद गजनवी मे हुआ था , 2 नवंबर 971 ईस्वी अफगानिस्तान के गजनी मे हुआ था , जिस समय गजनवी का राज्यारोहण हुआ था उस समय उसकी 27 उम्र वर्ष की थी, महमूद गजनवी की माता जबूलिस्तान के सरदार की पुत्री थी, ।
» महमूद को बचपन से इस्लामी ढंग शिक्षा मिली थी, उसको कुरान हदीस तथा सरई नियमों से अच्छी तरह परिचित था, महमूद का कद माध्यम तथा शरीर हृष्ट पुष्ट था परंतु वह चेहरे से कुरूप था, महमूद गजनवी का राज्याभिषेक ’ संभवता 1002 ई . मे हुआ था , क्योंकि पिता के द्वारा बांटे गए साम्राज्य से वह खुश नही था, महमूद गजनवी ने अपने छोटे भाई इस्माइल को पराजित करके उसके सम्पूर्ण साम्राज्य को अपने अधीन कर लिया था।
» महमूद गजनवी की गणना एशिया के महानतम मुस्लिम शासकों मे से एक है, महमूद गजनवी का राज्य बहुत ही विशाल था, उसके राज्य का विस्तार इराक तथा कैस्पियन सागर से गंगा तक फैला हुआ था।
» महमूद गजनवी बचपन से ही बहुत महत्वाकांक्षी था, वह बहुत ही कुशाग्र बुद्धि का था, ऐसा कहा जाता है की जब खलीफा ने महमूद के पास मान्यता पत्र भेजा, उस समय उसने प्रतिज्ञा की मै प्रति वर्ष भारत के काफिरों पर आक्रमण करूंगा।
महमूद गजनवी का राज्याभिषेक
» सुबुक्तगीन जो की अलप्तगीन का दास था भारत पर आक्रमण करने वाला प्रथम तुर्की शासक था सुबुक्तगीन के दो पुत्र थे महमूद और इस्माइल इसमे महमूद बड़ा और इस्माइल छोटा पुत्र था । शुरु से ही सुबुक्तगीन का अपने पुत्र इस्माइल के प्रति ज्यादा स्नेह था इसलिए उसने अपना उत्तराधिकारी अपने छोटे बेटे को ही घोषित किया । महमूद यह सब सहन करने के लिए तैयार नही था , उसने इस्माइल को गजनी देकर और ब्लख को अपने पास रख कर राज्य का विभाजन करने का सुझाव दिया लेकिन इस्माइल इससे सहमत नही हुआ अंत मे महमूद ने इस्माइल को एक युद्ध मे परास्त कर बंदी बना लिया और अपने पिता के राज्य पर अधिकार कर लिया , ।
महमूद गजनवी का भारत पर आक्रमण
» जितनी बार भारत पर आक्रमण किये। सामान्यतः यह बताया जाता है की, महमूद ने भारत इतिहासकारों मे गजनवी के भारत अभियानों की संख्या को लेकर आपस मे मतभेद है। अलग-अलग विद्वानों गजनवि के आक्रमणों की संख्या अलग- अलग मानते हैं। सामान्यतः यह माना जाता है , की महमूद गजनवी ने भारत पर 17 बार आक्रमण किया है। अपने प्रत्येक अभियान मे वह सफल रहा है संक्षेप मे महमूद गजनवी के भारत पर आक्रमणों का विवरण इस प्रकार है-
पहला आक्रमण – सीमावर्ती नगरों और दुर्गों पर अधिकार
» महमूद गजनवी ने पहला आक्रमण 1000 ई. मे अपने साम्राज्य के आस – पास के राज्यों पर किया था , जिसमे कुछ राज्यों पर विजय भी हासिल की थी।
दूसरा आक्रमण – जयपाल से युद्ध , 1001 ई.
» महमूद गजनवी ने दूसरा आक्रमण 1001 ई. मे पंजाब के हिन्दूशाही राजा जयपाल के विरुद्ध किया था । पेशावर के पास दोनों सेनाओ के मध्य युद्ध जिसमे जयपाल की पराजय हो गई थी।
» महमूद का यह पहला महत्वपूर्ण अभियान था, जिसमे उसने हिन्दूशाही वंश के शासक जयपाल पर हमला किया । उसके इतिहासकारों ने जयपाल को अल्लाह का शत्रु करार दिया है । सुल्तान ने चने हुए 15000 घुड़सवारों के साथ आक्रमण किया । यह युद्ध पेशावर के समीप 2 नवंबर , 1001 को लड़ा गया। जयपाल ने 12000 घुड़सवारों , 30000 पैदल सेना तथा 50 हथियो के साथ महमूद का मुकाबला किया।
» इस युद्ध मे जयपाल पराजित हुआ था उसे अपने पुत्रों , पौत्रों तथा संबंधियों सहित बंदी बना लिया गया । जयपाल को अपमानित किया गया। एक बड़ी राशि दी तथा 50 हाथी महमूद के सुपुर्द करने पर उसे छोड़ दिया गया । जयपाल इस अपमान को सहन नही कर सका तथा यह बताया जाता है किं अपने पुत्र आनंदपाल को राज्य की बागडोर सौपकर 1002 ई. मे पराजय का अपमान न सह पाने के कारण जयपाल ने स्वयं चिता मे जल कर आत्महत्या कर ली थी।
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तीसरा आक्रमण – भेरा आक्रमण 1003 ई.
» महमूद गजनवी ने तीसरा आक्रमण 1003 ई. मे भेरा ( वर्तमान नाम उच्छ ) के राजा बजरा ( वास्तविक नाम बाजीराम ) के विरुद्ध किया था, यह युद्ध 1003 ई. मे महमूद ने झेलम के किनारे पर स्थित भेरा पर आक्रमण किया । भेरा राज्य के शासक विजयराय ने महमूद का चार दिन तक डटकर विरोध किया, परंतु वह असफल रहा। महमूद ने भेरा को बुरी तरह लूटा तथा अनेक लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया । भेरा को गजनी के राज्य मे मिला लिया गया । यह स्थान बाद मे आक्रमणों मे महत्वपूर्ण आधार बना ।
चौथा आक्रमण – मूलतान की विजय
» महमूद गजनवी ने चौथा आक्रमण 1005 ई. मे मुल्तान के शिया शासक फतेह दाऊद के विरुद्ध किया था, गजनवी का मूलतान पर आक्रमण महत्वपूर्ण था। यहाँ पर फतेह दाऊद शासक था। वह शिया मत को मानता था तथा महमूद कट्टर सुन्नी मुसलमान था । मुल्तान पर अधिकार कर वह आगे के आक्रमणों से सहायता बनाना चाहता था ।
» फतेह दाऊद ने आनंदपाल से सहायता माँगी । आनंदपाल ने मार्ग मे विरोध भी किया, परंतु उसे एक तरफ कर दिया गया। दाऊद भी पराजित हुआ तथा उसने 20000 दरहम वार्षिक कर देना स्वीकार किया।
पाँचवा आक्रमण – नवासाशाह की हार
» महमूद गजनवी ने पंचवा आक्रमण 1005-6 ई. मे आनंद पाल के पुत्र सुखपाल या सेवकपाल के विरुद्ध किया था, जो की मूलतान विजय के अवसर पर गजनवी ने आनंद पाल के पुत्र सुख पाल को पकड़ लिया था तथा उसने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया। गजनवी ने उसे मूलतान का गवर्नर भी नियुक्त किया था । परंतु नवासाशाह ने कुछ समय बाद बगावत कर दी तट अपने आपको स्वतंत्र घोषित कर दिया।
» इस कारण महमूद गजनवी ने उसको दंडित करने के लिए पुनः मूलतान पर आक्रमण किया। सुखपाल ने अन्य शासकों से सहायता माँगी, परंतु उसे कोई सहायता नही मिली परिणाम स्वरूप वह पराजित हो गया तथा महमूद ने उसे बंदी बनाकर कारावास मे डाल दिया।
छठा आक्रमण – आनंद पाल की हार
» महमूद गजनवी ने छठा आक्रमण 1008 ई. हिन्दूशाही राजा आनंदपाल के विरुद्ध किया था, जिसमे आनंदपाल के द्वारा दिल्ली, अजमेर , उज्जैन , ग्वालियर , कन्नौज ,कालिंजर की संयुक्त सेनाओ का संघ बनाया था परंतु महमूद गजनवी ने सभी को पराजित कर दिया था ।
» सुल्तान महमूद आनंदपाल के खिलाफ युद्ध करने के लिए दिसंबर 1008 ई. मे गजनी से चला। हिन्दूशाही वंश प्रारंभ से ही तुर्क आक्रमणों को झेल रहा था। आनंदपाल गजनवी के बढ़ते प्रभाव को कम करना चाहता था । दूसरा , उसने गजनवी के अत्याचारों से बचने के लिये भारत के हिन्दू शासकों को से एकत्र हो जाने की अपील की, ।
» सातवाँ आक्रमण – नगरकोट पर आक्रमण 1009 ई. मे नगरकोट के ज्वाला देवी मंदिर के विरुद्ध किया था जिसमे ज्वाला देवी के मंदिर को महमूद के द्वारा बुरी तरह लूटा गया था।
» पंजाब विलय के महमूद ने हिमालय मे नगरकोट ( कांगड़ा) पर आक्रमण किया । नगरकोट मे एक प्रसिद्ध मंदिर था जहाँ पर अपार धन एकत्र था । तीन दिन की घेराबंदी के बाद नगरकोट का पतन हो गया। फरिश्ता के अनुसार , टिड्डी दल की भांति आती हुई शत्रु सेना को देखकर हिन्दुओ ने भयभीत होकर नगर के किले के दरवाजे खोल दिए । वे धरती पर इस प्रकार गिर गए जैसे बाज के सामने चिड़िया तथा आसमानी बिजली के सामने वर्षा की बुँदे।
» महमूद को नगर के मंदिर से अपार दहन सामग्री प्राप्त हुई। उतबी ने वर्णन किया है, महमूद को बहुत ज्यादा दहन प्राप्त हुआ था। इस लूट मे माल मे चांदी का कमरा, 700 मन सोने – चांदी के बर्तन , 200 मन सोना , 2000 मन चांदी और 20 मन हीरे जवाहरात शामिल थे।
» इस धन की महमूद ने गजनी पहुंचकर प्रदर्शनी लगाई जिसे दूर- दूर के लोग देखने आए। इस धन की प्राप्ति ने महमूद को भारत मे मंदिरों पर आक्रमण के लिए प्रेरित किया।
आठवां आक्रमण – मूलतान पर हमले
» महमूद गजनवी ने आठवां आक्रमण 1011 ई. मे दोबारा से मुल्तन के विरुद्ध किया था , अगले कुछ वर्षों मे महमूद ने नारायणपुर ( अलवर ) मे हमला किया। यहाँ उसने मंदिरों को तोड़ा तथा धन लूटा । 1011 ई. मे उसने मूलतान के शासक फतेह दाऊद को पुनः पराजित किया।
नौवा आक्रमण – थानेसर पर हमले
» महमूद गजनवी ने नौवा आक्रमण 1012 ई. मे हरियाणा के थानेश्वर मे स्थित चक्रास्वामी मंदिर के विरुद्ध किया था जिसमे महमूद गजनवी ने मंदिर मे लूट पात मचाई थी।
» 1012 ई. मे उसने थानेसर पर आक्रमण किया, कुरुक्षेत्र मे यह नगर हिन्दुओ की श्रद्धा का केंद्र था। यहाँ पर अनेक मंदिर स्थित थे । महमूद ने अचानक इस नगर पर हमला किया तथा चक्रस्वामी मंदिर की मूर्ति को तोड़ा तथा वहाँ से अपार धन प्राप्त किया। नगर मे कल्लेआम किया तथा जाते हुए चक्र स्वामी की मूर्ति को भी अपने साथ ले गया ।
दसवां आक्रमण – त्रिलोचनपाल पर हमला
» महमूद गजनवी ने दसवां आक्रमण लाहौर के हिन्दूशाही राजा त्रिलोचनपाल के विरुद्ध किया था और उस समय हिन्दूशाही राजवंश की राजधानी नंदनपुर मे थी।
» 1008 ई. मे आनंदपाल की हार के बाद हिन्दूशाही वंश छोटे -से राज्य मे बदल गया था, परंतु आनंदपाल ने हिम्मत नही हारी। उसने अपनी राजधानी नंदानाह ( झेलम के समीप खेकड़ा की नमक खानों के पास ) बदल ली। उसने अपनी सेनाओ को पुनर्गठित करने का प्रयास भी किया । यहाँ वह शांतिपूर्वक मृत्यु को प्राप्त हुआ तथा उसके बाद त्रिलोचनपाल ने राज्य को संभाला।
ग्यारहवाँ आक्रमण – कश्मीर पर आक्रमण
» महमूद गजनवी ने ग्यारहवाँ आक्रमण 1015 ई. मे कश्मीर के विरुद्ध किया था जो एक असफल आक्रमण था, बताया जाता है की 1014 ई. मे महमूद ने त्रिलोचनपाल की राजधानी को घेर लिया। इस समय मे त्रिलोचनपाल के पुत्र भीमपाल ने अहम् भूमिका निभाई।
» त्रिलोचनपाल ने कश्मीर के शासक के यहाँ शरण ली। महमूद ने उसका पीछा किया तथा दोनों की सेनाओ को हराया । महमूद ने कश्मीर की पारी मे जाना उचित नही समझा तथा त्रिलोचनपाल भी पंजाब के शिवालिक क्षेत्र मे आ गया तथा उसने बुंदेलखंड के शासक विद्याधर से संबंध स्थापित किये। महमूद ने इस गठबंधन को तोड़ने के राम गंगा नामक स्थान पर उसे हराया । त्रिलोचनपाल के बाद भीमपाल हिन्दूशाही वंश का अंतिम शासक हुआ जिसकी मृत्यु 1026 ई . मे हुई।
बारहवाँ आक्रमण – मथुरा और कन्नौज की विजय , 1018 ई.
» महमूद गजनवी ने बारहवाँ आक्रमण 1018 ई. मे कन्नौज के प्रतिहार राजा त्रिलोचनपाल के विरुद्ध किया था । परंतु उससे पहले महमूद ने बुलंदशहर , मथुरा और वृंदावन मे लूट पाट मचाई थी ।
» महमूद को भारत को लड़ाइयों और विजयों मे अन्य प्रसिद्ध विजय मथुरा और कन्नौज की विजय यह है की भौगोलिक दृष्टि से दोनों क्षेत्र गजनी से बहुत दूरी पर थे तथा दोनों क्षेत्र भारत के मध्य भाग गंगा- यमुना के दोआब मे स्थित थे। 1018 ई,. मे गजनी से चलकर मथुरा पर आक्रमण के इरादे से वह आगे बढ़ा । मथुरा उस समय के सम्पन्न नगरों मे से था । पौराणिक पात्र श्रीकृष्ण का जन्म स्थल होने के कारण वह धार्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण था, नगर की सुरक्षा का प्रबंध था।
» परंतु यहाँ की सेनाओ ने आक्रमणकारी सेना का कोई विरोध नही किया । सुंदर मथुरा नगर और मंदिरों को खूब लूटा तथा बहुत सी शुद्ध सोने की मूर्तियां तथा अपार संपत्ति मंदिरों से प्राप्त हुई। उतबी ने उसका उल्लेख किया है। मथुरा को लूटने के महमूद उत्तरी भारत की सत्ता के प्रसिद्ध केंद्र कन्नौज की ओर बढ़ा , यहाँ पर गुर्जर प्रतिहार वंश का राज्यपाल नामक शासक था।
» वह महमूद के आक्रमण की खबर सून कर शहर छोड़ कर भाग खड़ा हुआ। महमूद ने मथुरा के समान कन्नौज को भी खूब लूटा उसे यहाँ से उसकी कल्पना से भी अधिक प्राप्त हुई। इसे लेकर वह वापस गजनी चला गया ।
तेरहवाँ आक्रमण – कालिंजर तथा ग्वालियर पर हमला , 1019 ई.
» महमूद गजनवी ने तेरहवा आक्रमण 1019 ई. कालिंजर के राजा विद्याधर राव के विरुद्ध था, कालिंजर का शासक चंदेल वंशी गंड उस समय उत्तरी भारत के शक्तिशाली शासकों मे से एक था । महमूद के वापस गजनी लौट जाने पर उसने कन्नौज के शासक राज्यपाल , जो की महमूद के आक्रमण से डरकर भाग गया था, को दंडित करने के लिए कन्नौज पर आक्रमण किया । ग्वालियर के शासक ने भी इसमे उसका साथ दिया । युद्ध मे राज्यपाल मारा गया । महमूद ने उसे अपना अपमान समझा तथा गंड को दंड देने के इरादे से उसने 1019 ई. मे कलिंजर पर आक्रमण किया ।
» महमूद ने कलिंजर पर घेरा डाल दिया, परंतु यह एक मजबूत किला था। महमूद अधिक समय तक इंतजार नहीं करना चाहता था । वह गजनी वापस जाना चाहता था । अततः चंदेल शासक से संधि प्रस्ताव किया जिसे उसने स्वीकार करते हुए 300 हाथी महमूद को भेंट किये। इस प्रकार राजा गंड ने भी महमूद से संधि कर ली तथा उसे बड़ी धन राशि देना स्वीकार किया। इसके पश्चात महमूद ने ग्वालियर के शासक अर्जुन पर 1020 ई. मे हमला किया उसने थोड़े विरोध के बाद महमूद की अधीनता स्वीकार कर ली।
चौदहवाँ आक्रमण – पंजाब
» महमूद गजनवी ने चौदहवाँ आक्रमण 1020 ई . मे पंजाब के विरुद्ध किया था क्योंकि उस समय पंजाब मे कोई राजा नही था और वहाँ पर अव्यवस्था फैली हुई थी । महमूद गजनवी ने पंजाब मे सिक्के जारी किये जिन पर घुड़सवार और नंदी का चित्र बना हुआ था । सर्वप्रथम महमूद गजनवी ने ही भारतीय ढन्ग के सिक्के जारी किये थे जिन्हे दिल्लीवाला के नाम से भी जाना जाता है।
पन्द्रहवा आक्रमण – ग्वालियर
» महमूद गजनवी ने पंद्रहवाँ आक्रमण 1022 ई. मे ग्वालियर और फिर कलिंजर के विरुद्ध किया था ।
सोलहवां आक्रमण – सोमनाथ पर हमला , 1025 ई.
» महमूद गजनवी ने सोलहवां आक्रमण 1025 ई. मे गुजरात मे स्थित सोमनाथ मंदिर के विरुद्ध किया था जिसमे महमूद के द्वारा सोमनाथ के मंदिर को बुरी तरह लूटा गया था और अंत मे मूर्ति को तोड़ दिया गया था । सोमनाथ मंदिर मे लगे चंदन के दरवाजे को भी महमूद उखाड़ ले गया था परंतु अंग्रेजों के शासनकाल मे अफगानिस्तान से वापस लाया गया था जो आज आगरा के लाल किले मे रखा हुआ है ।
» सौराष्ट्र (गुजरात) मे सरस्वती नदी के किनारे पर स्थित सोमनाथ के मंदिर पर हमला महमूद का सबसे प्रमुख हमला माना जाता है। यह मंदिर हिन्दुओ की श्रद्ध का केंद्र था । यहा चंद्रग्रहण और सूर्यग्रहण के अवसर पे लाखों लोग एकत्र होते थे । भारत के राजाओ ने मंदिर के खर्च के लिए बड़ी संख्या मे ग्राम अनुदान मे डे रखे थे। मंदिर का मंडप 56 रत्न जड़ित स्तंभों पर टिका हुआ था । ऐसा माना जाता है की मंदिर के मध्य मे सोमनाथ की मूर्ति हवा मे टिकी हुई थी तथा इसका घंटा बजाने के लिए सौ मन सोने की जंजीर बनी हुई थी ।
» सोमनाथ मंदिर की अतुलित धन संपदा से आकर्षित होकर महमूद ने अपनी समस्त सेना के साथ 17 अक्टूबर , 1024 को गजनी से कूच किया। रास्ते की सभी मुश्किलों को पार करने के लिए पहले से तैयारी की गई थी। हथियारों के साथ – साथ भोजन पानी व अन्य सामग्री की बड़े पैमाने पर व्यवस्था की गई, 30 हजार ऊंटों पर भोजन , पानी व अन्य सामग्री लादी गई थी।
» जनवरी , 1025 मे महमूद गजनवी गुजरात के शासक राजा भीमदेव की राजधानी आने अनहिलवाड़ा पहुँचा , लेकिन महमूद गजनवी के आने की सूचना पाकर भीमदेव पहले की राजधानी छोड़कर भाग गया । जिन थोड़े से सैनिकों ने विरोध किया उनको आसानी से हराकर महमूद ने नगर पर अधिकार कर लिया, । पूरे नगर मे कल्लेआम किया गया लगभग 50 हजार लोग मारे गए, सोमनाथ की मूर्ति तोड़ दी गई तथा गजनी मक्का और मदीना भिजवाई गई जहाँ पर प्रमुख मस्जिदों की सीढ़ियों मे उसके टुकड़ों को लगवाया गया।
» एक अनुमान के अनुसार सोमनाथ से लूटी गई संपत्ति की कीमत लगभग 20 लाख दीनार थी, गजनी की तरफ लौटते हुए रास्ते मे खोखर जाति के लोगों ने उसे तंग किया, सोमनाथ पर आक्रमण गजनवी का 16 वां आक्रमण माना जाता है ।
सत्तरहवाँ आक्रमण – जाट राजाओ के विरुद्ध
» महमूद गजनवी ने सत्तरहवाँ आक्रमण 1027 ई. मे सिंध के जाट राजाओ के विरुद्ध किया था जिसमे महमूद गजनवी ने जाट राजाओ को बुरी तरह सिंध से खदेड़ कर भगाया था।
» उसने अंतिम बार भारत पर आक्रमण 1026 ईस्वी मे किया । उसने यह आक्रमण खोकर वंश ने उन जाटों को पराजित करने के लिए किया जिन्होंने सोमनाथ के आक्रमण के समय उसका प्रतिरोध किया था। इस अभियान मे भी महमूद गजनवी सफल रहा।
महमूद गजनवी के आक्रमण का उद्देश्य
» महमूद गजनवी ने भारत पर 1000 ईस्वी से लेकर 1027 ईस्वी तक 17 बार आक्रमण किया , उसके अनेक आक्रमण यदि राजनिकित उद्देश्यों की औरती करते हुए नजर आते है तो कुछ आक्रमण केवल उसकी सनक का परिचय प्रदान करते हैं, उसने भारत मे मंदिरों को निशाना बनाया , मूर्तियों को तोड़ा , मंदिरों से बड़ी मात्रा मे धन लूटकर गजनी ले गया तथा कुछ स्थानों पर अपने साम्राज्य की स्थापना की, परंतु कुछ आक्रमणों मे उसने केवल रक्तपात पर भी ध्यान दिया , अतः गजनवी के आक्रमणों के उद्देश्य को लेकर इतिहासकार असंमजस की स्थित मे है, गजनवी के आक्रमणों के इतिहासकारों ने निम्नलिखित उद्देश्य बताए हैं-
धार्मिक उद्देश्य
» कई इतिहासकारों ने गजनवी के भारत आक्रमणों का उद्देश्य इस्लाम धर्म का प्रसार बताया है, । गजनवी के समकालीन लेखकों मे उतबी और अल्बरूनी ने गजनवी के भारत आक्रमणों का उद्देश्य धर्मिक बताया है। तरीखे यामिनी के लेखक उतबी का मत है की सिंहासन पर बैठने पर महमूद ने प्रण किया था की हराकर इस्लाम का प्रचार – प्रसार करेगा और इसी कारण महमूद ने अपने आक्रमणों मे मंदिरों को निशाना बनाया , मूर्तियों को तोड़ा और अनेक हिन्दुओ को जबरदस्ती मुसलमान बनाया ।
आर्थिक उद्देश्य
» प्रो. हबीब , प्रो. जाफ़र आदि ने गजनवी आक्रमणों के पीछे धार्मिक उद्देश्य को नकारा है , उन्होंने यह सिद्ध किया है की वास्तव मे महमूद के आक्रमणों कअ मुख्य उद्देश्य धन संपदा प्राप्त करना था इसमे भी दो प्रकार के विचार सामने आते है। प्रथम , यह की धन का अति लालची था । उतबी के वर्णन से भी स्पष्ट होता है की, वह भारत मे धन मे रुचि रखता था । यहाँ के हाथियों की भी चाहत थी । वह नगरकोट (भीमनगर) से धन जीतकर जब वापस गजनी पहुँचा तो उसने जीते हुए सोने , चांदी , हीरे जवाहरात की अपने आंगन मे प्रदर्शनी लगवाई तथा दूसरे देशों के राजदूतों को इस धन को देखने के लिए आमंत्रित किया।
राजनीतिक उद्देश्य
» कुछ इतिहासकारो का विचार है, की महमूद साम्राज्यवादी था तथा वह अपने साम्राज्य का प्रसार करना चाहता था । इसी कारण से उसने भारत पर आक्रमण किया तथा पंजाब को गजनवी के साम्राज्य मे मिला लिया। परंतु यह विचार पूरी तरह स्वीकार्य नही है , क्योंकि उसने सारे जीते हुए प्रदेशों को साम्राज्य मे नही मिलाया और न ही उनकी व्यवस्था करने के लिए अधिकारियों को नियुक्त किया। उसने पंजाब को भी गजनी साम्राज्य का विस्तार के उद्देश्य से नही मिलाया बल्कि अपने आक्रमणों के लिए उसने भारत के द्वार ( पंजाब ) पर अधिकर किया। पंजाब को आधार बनाकर वह भारत पर बार-बार आक्रमण करता रहा । आर . सी. मजूमदार के शब्दों मे,“ पंजाब का विलयिकरण प्रसन्नतापूर्वक नही बल्कि आवश्यकता की पूर्ति के लिए किया गया था ।”
मंदिरों पर आक्रमणों का उद्देश्य
» सवाल यह है की क्या महमूद ने मंदिरों पर आक्रमण मात्र इस्लाम जगत मे प्रसिद्धि प्राप्त करने या मंदिरों से धन प्राप्त करने के लिए ही किया ? इस प्रश्न का सही उत्तर देने मे सक्षम हो सकते हैं, जब हम किसी भी समय मे उस घटना के सामाजिक संदर्भों मे देखकर मूल्यांकन करेंगे । यह ध्यान देने योग्य तथ्य है की पूर्व मध्य काल मे भारत मे धर्म तथा राज्य के बीच गहरा संबंध था, धर्म का सहारा शासक अपनी सत्ता की वैधानिक प्राप्त करने तथा यश प्राप्त करने के लिए करते थे, प्रत्येक राजवंश का अपना इष्ट देव तथा राजदेवालय भी होता था ।
गजनवी के आक्रमणों का भारत पर प्रभाव
» हालांकि भारत पर गजनवी के आक्रमण का कोई गहरा राजनीतिक प्रभाव नही पड़ा , इन आक्रमणों ने राजपूत राजाओ की युद्ध तकनीकों की कमियों को उजागर किया । इससे आगे पता चला की भारत मे कोई राजनीतिक एकरूपता नही रही है और इस मुद्दे को नियति मे और अधिक हमले के लिए जाना जाता है ।
महमूद गजनवी की मृत्यु
» अपने अंतिम काल मे महमूद गजनवी असाध्य रोगों से पीड़ित होकर असह्म कष्ट पाता रहा था । अपने दुष्कर्मों को याद कर उसे घोर मानसिक क्लेश था। वह शारीरिक एवं मानसिक कष्टों से ग्रसित था । उसकी मृत्यु सं. 1087 ( सन 1030 , अप्रैल 30) मे गजनी मे हुई थी ।