
परशुराम की कहानी – Story Of Parshuram
» भगवान विष्णु के छठे आवेश अवतार परशुराम की जयंती वैशाख शुक्ल तृतीय को आती है। इस बार यह जयंती 30 अप्रैल 2025 को मनाई जाएगी। आओ हम भगवान परशुराम कौन थे और क्या है उनकी कहनी उसकी चर्चा करते है ।
» जन्म समय : माथुर चतुर्वेदी ब्राह्मणों के इतिहास – लेखक , श्रीबाल मुकुंद चतुर्वेदी के अनुसार विष्णु के छठे आवेश अवतार भगवान परशुराम का जन्म सतयुग और त्रेता के संधिकाल मे 5142 वि. पू. वैशाख शुक्ल तृतीया के दिन – रात्रि के प्रथम प्रहर प्रदोष काल मे हुआ था। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र मे रात्रि के प्रथम प्रहर मे 6 उच्च के ग्रहों से युक्त मिथुन राशि पर राहू के स्थित रहते माता रेणुका के गर्भ से भृगु ऋषि के कुल मे परशुराम का प्रादुर्भाव हुआ था।
» ऋचीक – सत्यवती के पुत्र जमदग्नि , जमदग्नि – रेणुका के पुत्र परशुराम थे। ऋचीक की पत्नी सत्यवती राजा गाधि ( प्रसेनजित ) की पुत्री और विश्वमित्र (ऋषि विश्वमित्र) की बहिन थी। परशुराम सहित जमदग्नि के 5 पुत्र थे।
» जन्म स्थान : भृगक्षेत्र के शोधकर्ता साहित्यकार शिवकुमार सिंह कौशिकेय के अनुसार परशुराम का जन्म वर्तमान बलिया के खैराडीह मे हुआ था। उन्होंने अपने शोध और खोज मे अभिलेखिय और पुरातात्विक साक्ष्यों प्रस्तुत किये है । श्री कौशिकेय अनुसार उत्तर प्रदेश के शासकीय बलिया गजेटियर मे इसका चित्र सहित संपूर्ण विवरण मिल जाएगा ।
» एक अन्य किंवदंती के अनुसार मध्यप्रदेश के इंदौर के पास स्थित महू से कुछ ही दूरी पर स्थित है जानापाव कि पहाड़ी पर भगवान परशुराम का जन्म हुआ था। एक तीसरी मान्यता अनुसार छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले मे घने जंगलों के बीच स्थित कलचा गाँव मे उनका जन्म हुआ था । एक अन्य चौथी मान्यता अनुसार उत्तर प्रदेश मे शाहजहाँपुर के जलालाबाद मे जमदग्नि आश्रम से करीब दो किलोमीटर पूर्व दिशा मे हजारों साल पुराने मंदिर के अवशेष मिलते हैं जिसे भगवान परशुराम की जन्मस्थली कहा जाता है।
» परशुराम के गुरु : परशुराम को शस्त्रों की शिक्षा दादा ऋचीक , पिता जमदग्नि तथा शस्त्र चलाने कि शिक्षा अपने पिता के मामा राजर्षि विश्वमित्र और भगवान शंकर से प्राप्त हुई। च्यवन ने राजा शर्याति कि पुत्री सुकन्या से विवाह किया,। परशुराम योग, वेद और नीति मे पारंगत थे। ब्रह्मसत्र समेत विभिन्न दिव्यअस्त्रों के संचालन मे भी वे पारंगत थे। उन्होंने महर्षि विश्वमित्र एवं ऋचीक के आश्रम मे शिक्षा प्राप्त की ।
» परशुराम के शिष्य : त्रैतायुग से द्वापर युग तक परशुराम के लाखों शिष्य थे। , महाभारत काल के वीर योद्धाओ भीष्म, द्रोणाचार्य और कर्ण को अस्त्र- शस्त्रो की शिक्षा देने वाले गुरु , शस्त्र एवं शास्त्र के धनी ऋषि परशुराम का जीवन संघर्ष और विवादों से भरा रहा है।
» माता का सिर काट दिया : परशुराम के चार बड़े भाई थे । एक दिन जब सभी पुत्र फल लेने के लिए वन चले गए , तब परशुराम की माता रेणुका स्नान करने गई । जिस समय वह स्नान करके आश्रम को लौट रही थी, उन्होंने गंधर्वराज चित्रकेतु ( चित्ररथ ) को जलविहार करते देखा।
» यह देखकर उनके मन मे विकार उत्पन्न हो गया। और वो खुद को रोक नही पाई। महर्षि जमदग्नि ने यह बात जान ली। इतने मे ही वहाँ परशुराम के बड़े भाई रुकमवान , सुषेण , वसु और विश्वामित्र भी आ गए। महर्षि जमदग्नि ने उन सभी से बारी- बारी अपनी माँ का वध करने को कहा। लेकिन मोहवश किसी ने ऐसा नही किया। तब मुनि ने उन्हे श्राप दिया और उनकी विचार शक्ति नष्ट हो गई।
» फिर वहाँ परशुराम आए और तब जमदग्नि ने उनसे यह कार्य करने के लिए कहा। उन्होंने पिता के आदेश पाकर तुरंत अपनी माँ का वध कर दिया। यह देख कर महर्षि जमदग्नि बहुत प्रसन्न हुए । और परशुराम को वर मांगने के लिए कहा। तब परशुराम ने अपने पिता से माता रेणुका को पुनर्जीवित करने और चारों भाईयों को ठीक करने का वरदान माँगा। साथ ही उन्होंने कहा कि इस घटना की किसी को स्मृति न रहे और अजेय होने का वरदान भी मांगा ,। महर्षि जमदग्नि ने उनकी सभी मनोकामनाए पूरी कर दि । माता रेणुका कोंकण नरेश की पुत्री थी।
» हैहयवंशी राजाओ से युद्ध : समाज मे आम धरणा यह है की परशुराम ने 21 बार धरती को क्षत्रियविहीन कर दिया था। यह धारणा गलत है। भृगुक्षेत्र के शोधकर्ता साहित्यकार शिवकुमार सिंह कौशिकेय के अनुसार जिन राजाओ से इनका युद्ध हुआ उनमे से हैहयवंशी राजा सहत्रार्जुन इनके सगे मौसा थे। जिनके साथ इनके पिता जमदग्नि ऋषि कई बातों को लेकर विवाद था जिसमे दो बड़े कारण थे। पहला कामधेनु और दूसरा रेणुका।
» परशुराम राम के समय मे हैहयवंशीय क्षत्रिय राजाओ का अत्याचार थे। भार्गव और हैहयवंशियों की पुरानी दुश्मनी चली आ रही थी। हैहयवंशियों का राजा सहस्त्रबाहु अर्जुन भार्गव आश्रमों के ऋषियों को सताया करता था। एक समय सहस्त्रबाहु के पुत्रों ने जमदग्नि के आश्रम कि कामधेनु गाय को लेने तथा परशुराम से बदला लेने की भावना से परशुराम के पिता का वध कर दिया। परशुराम की माँ रेणुका पति की हत्या से विचलित होकर उनकी चिताग्नि मे प्रविष्ट हो सती हो गई।
» इस घोर घटना ने परशुराम को क्रोधित कर दिया और उन्होंने संकल्प लिया – मैं हैहय वंश के सभी क्षत्रियों का नाश कर दूँगा। इसी कसम के तहत उन्होंने इस वंश के लोगों से 36 बार युद्ध कर उनका समूल नाश कर दिया था । तभी से यह भ्रम फैल गया कि परशुराम ने धरती पर से 36 बार क्षत्रियों का नाश कर दिया था।
» हैहयवंशियो के राज्य की राजधानी महिष्मति नगरी थी जिसे आज महेश्वर कहते हैं जबकि परशुराम और उनके वंशज गुजरात के भडौआदि क्षेत्र मे रहते थे। परशुराम ने अपने पिता के वध के बाद भार्गवो को संगठित किया और सरस्वती नदी तट पर भूतेश्वर शिव तथा महर्षि अगस्त्य मुनि कि तपस्या कर अजेय 41 आयुध दिव्य रथ प्राप्त किये और शिव द्वारा प्राप्त परशु को अभिमंत्रित किया।
» इस जबरदस्त तैयारी के बाद परशुराम ने भडौच से भार्गव सैन्य होकर हैहयो की नर्मदा तट की बसी महिष्मति नगरी को घेर लिया तथा उसे जीतकर व जलाकर ध्वस्त कर उन्होंने नगर के सभी हैहयवंशियों का भी वध कर दिया । अपने इस प्रथम आक्रमण मे उन्होंने राजा सहस्त्रबहु का महिष्मति मे ही वध कर ऋषियों को भयमुक्त किया।
» इसके बाद उन्होंने देशभर मे घूमकर अपने 21 अभियानों मे हैहयवंशि 64 राजवंशों का नाश किया। इनमे 14 राजवंश तो पूर्ण अवैदिक नास्तिक थे। इस तरह उन्होंने क्षत्रियों के हैहयवंशि राजाओ का समूल नाश कर दिया जिसे समाज ने क्षत्रियों का नाश माना जबकि ऐसा नही है। अपने इस 21 अभियानों के बाद भी बहुत से हैहयवंशि छुपकर बच गए होंगे।
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» चारों युग मे परशुराम : सतयुग मे जब एक बार गणेशजी ने परशुराम को शिव दर्शन से रोक लिया तो, रुष्ट परशुराम ने उन पर परशु प्रहार कर दिया , जिससे गणेश का एक दांत नष्ट हो गया और वे एकदंत कहलाये। त्रेतायुग मे जनक, दशरथ आदि राजाओ का उन्होंने समुचित किया। सीता स्वयंवर मे श्रीराम का अभिनंदन किया।
» द्वापर मे उन्होंने कौरव – सभा मे कृष्णा का समर्थन किया और इससे पहले उन्होंने श्रीकृष्णा को सुदर्शन चक्र उपलब्ध करवाया था। द्वापर मे उन्होंने ही असत्य वाचन करने के दंड स्वरूप कर्ण को सारी विद्या विस्मृत हो जाने का श्राप दिया था । उन्होंने भीष्म , द्रोण व कर्ण को शस्त्र विद्या प्रदान की थी। इस तरह परशुराम के अनेक किस्से हैं।
» चिरंजीवी हैं परशुराम : कठिन तप से प्रसन्न हो भगवान विष्णु ने उन्हे कल्प के अंत तक तपस्यारत भूलोक पर रहने का वर दिया। भगवान परशुराम किसी समाज विशेष के आदर्श नही है। वे सम्पूर्ण हिन्दू समाज के हैं और वे चिरंजीवी हैं। उन्हे राम के काल मे भी देखा गया और कृष्ण के काल मे भी ।
» उन्होंने ही भगवान श्रीकृष्ण को सुदर्शन चक्र उपलब्ध ही कराया था। कहते हैं कि वे कल्प के अंत तक धरती पर ही तपस्यारत रहेंगे। पौराणिक कथा मे वर्णित है कि महेंद्रगिरी पर्वत भगवान परशुराम कि तप की जगह थी और अंततः वह उसी पर्वत पर कल्पांत तक के लिए तपस्यारत होने के लिए चले गए थे।