
दीवान की मृत्यु क्यूँ ? विक्रम और बेताल । Story Of Vikram And Betal ।
» किसी जमाने मे अंगदेश मे यशकेतु नाम का राजा था। उसके दीर्घदर्शी नाम का बड़ा ही चतुर दीवान था। राजा बड़ा विलासी था। राज्य का सारा बोझ दीवान पर डालकर वह भोग मे पड़ गया। दीवान को बहुत दुःख हुआ। उसने निंदा होती है। इसलिए वह तीरथ का बहाना करके चल पड़ा। चलते – चलते रास्ते मे उसे एक शिव – मंदिर मिला। उसी समय नछिदत्त नाम का एक सौदागर वहाँ आया और दीवान के पूछने पर उसने बताया कि वह सुवर्णद्वीप मे व्यापार करने जा रहा है। दीवान भी उसके साथ हो लिया।
» दोनों जहाज पर चढ़कर सुवर्णद्वीप पहुंचे और वहाँ व्यापार करके धन कमाकर लौटे। रास्ते मे समुद्र मे एक दीवान को एक कृल्पवृक्ष दिखाई दिया। उसकी मोटी – मोटी शाखाओ पर रत्नों से जुड़ा एक पलंग बिछा था । थोड़ी देर बाद वह गायब हो गई। पेड़ भी नही रहा। दीवान बड़ा चकित हुआ।
» दीवान ने अपने नगर मे लौटकर सारा हाल कह सुनाया । इस बीच इतने दिनों तक राज्य को चला कर राजा सुधर गया था और उसने विलासिता छोड़ दी थी। दीवान की कहानी सुनकर राजा उस सुंदरी को पाने के लिए बेचैन हो उठा और राज्य का सारा काम दीवान पर सौपकर तपस्वी का भेष बनाकर वही पहुँचा। पहुँचने पर उसे वही कल्पवृक्ष और वीणा बजा रही थी। थोड़ी देर बादवह गायब हो गई । पेड़ भी नही रहा। दीवान बड़ा चकित हुआ।
» दीवान ने अपने नगर मे लौटकर सारा हाल कह सुनाया । इस बीच इतने दिनों तक राज्य को चला कर राजा सुधर गया था और उसने विलासिता छोड़ दी थी । दीवान की कहानी सुनकर राजा उस सुंदरी को पाने के लिए बेचैन हो उठा और राज्य का सारा काम दीवान पर सौंपकर तपस्वी का भेष बनाकर वही पहुंचा ।
» पहुँचने पर उसे वही कल्पवृक्ष और वीणा बजाती कन्या दिखाई दी। उसने राजा से पूछा , तुम कौन हो ? राजा ने अपना परिचय दे दिया , । कन्या बोली, मै राजा मृगांकवती की कन्या हूँ। मृगांकवती मेरा नाम है। मेरे पिता मुझे छोड़कर न जाने कहाँ चले गए ।
» राजा ने उसके साथ विवाह कर लिया । कन्या ने यह शर्त रखी कि वह हर महीने के शुक्लपक्ष और कृष्णपक्ष की चतुर्दशी और अष्टमी को कही जाया करेगी और राजा उसे रोकेगा नही। राजा ने यह शर्त मान ली।
» इसके बाद कृष्णपक्ष की चतुर्दशी आई तो राजा से पूछताछ मृगांकवती वहाँ से चली। राजा भी चुपचाप पीछे- पीछे चल दिया । अचानक राजा ने देखा कि एक राक्षस निकला और उसने मृगांकवती को निगल लिया। राजा को बड़ा गुस्सा आया और उसने राक्षस का सिर काट डाला । मृगांकवती उसके पेट से जीवित निकल आई।
» राजा ने उससे पुछा कि यह क्या माजरा है तो उसने कहा, महाराज , मेरे पिता मेरे बिना भोजन नहीं करते थे। मै अष्टमी और चतुर्दशी के दिन शिव पूजा यहाँ करने आती थी। एक दिन पूजा मे मुझे बहुत देर हो गई । पिता को भूखा रहना पड़ा। देर से जब मै घर लौटी तो उन्होंने गुस्से मे मुझे शाप दे दिया कि अष्टमी और चतुर्दशी के दिन जब मैं पूजन के लिए आया करूंगी तो एक राक्षस मुझे निगल जाया करेगा और मै उसका पेट चीरकर निकला करूंगी।
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» जब मैंने उनसे शाप छुड़ाने के लिए बहुत अनुनय की तो वह बोले , जब अंगदेश का राजा तेरा पति बनेगा और तुझे राक्षस से निगली जाते देखेगा तो वह राक्षस को मार देगा। तब तेरे शाप का अंत होगा।
» इसके बाद राजा उसे लेकर नगर मे आया। दीवान ने यह देखा तो उसका हृदय फट गया। और वह मर गया।
» इतना कहकर बेताल ने पूछा, हे राजन् ! यह बताओ कि स्वामी की इतनी खुशी के समय दीवान का हृदय फट गया।
» राजा ने कहा , इसलिए कि उसने सोचा कि राजा फिर स्त्री के चक्कर मे पड़ गया और राज्य की दुर्दशा होगी।
» राजा का इतना कहना था कि बेताल फिर पेड़ पर जा लटका। राजा ने वहाँ जाकर फिर उसे साथ लिया तो रास्ते मे बेताल ने यह कहानी सुनाई।