वरदराज की कहानी
प्राचीन काल के समय की बात हैं ! जब सभी विधार्थी गुरुकुल में रहकर ही पढ़ा करतें थें . उस समय हर बच्चे को शिक्षा ग्रहण करनें के लिए गुरुकुल में भेजा जाता था । बच्चें गुरुकुल में गुरु के आश्रम की देखभाल करते थें । औरअपनी शिक्षा पूरी करने तक वह सब वहीं पर रहते थें । वरदराज का भी गुरुकुल जानें का समय आ गया था । वहाँ आश्रम में वह अपनें मित्रों के साथ घुल मिलकर रहता था । लेकिन वह पढ़नें में बहुत ही ज्यादा कमजोर था । गुरुजी की कोई भी बात उसके समझ में बहुत ही कम आती थीं । इस कारण की वजह से गुरुकुल के सभी शिष्य उसका मजाक उड़ाते थें । उसके सभी मित्र आगे की कक्षा मे चलें गए , " पर वरदराज पढ़ाई में कमजोर होने के कारण आगे नहीं बाढ़ पाया । गुरुजी भी उसे शिक्षा दे दे कर बहुत परेशान हो गए थें । और वह वरदराज से बोले , " बेटा वरदराज ! मैंने तुम्हें शिक्षा देने के सारे प्रयास करके देख लिए " अब तो यही उचित होगा कि तुम यहाँ अपना समय बर्बाद मत करों । अपनें घर चलें जाओं । और घरवालों के काम मे सहयोग दो। वरदराज नें भी विचार किया , " कि गुरुजी नें जो भी कहा वो सहीं हैं " शायद विध्या मेरी किस्मत में नहीं हैं । यह सोचकर वरदराज गुरुकुल से निकल गया । अब वह घर की ओर धूप मे ही खुद से ही विचार करतें - करतें चल रहा था तभी अचानक वरदराज को बहुत तेज प्यास लगीं । इधर - उधर देखनें पर उसे दिखा कि थोड़ी दूर पर ही कुछ महिलायें मजे से बातें करतीं हुई एक कुएं से पानी भर रहीं थीं । वरदराज उनके पास गया ! और उनसे मांगकर पानी भी पिया । तभी वरदराज की नजर कुएं से लटकी पानी भरने वाली रस्सी पर गई । उसने देखा कि पानी भरने की वजह से उस रस्सी की रगड़ की वजह से कुएं के एक सिरे पर बहुत सारें निशान बने हए थें । तब वरदराज नें उन महिलाओं से पूछा ! " कि इस कुएं के पत्थर पर यह निशान कैसे बनें ? तो एक महिला नें हस्ते हुए जवाब दिया , " कि यह निशान हमनें नहीं बनाएं " हम रोज इस कुएं में पानी की बाल्टी रस्सी सहित डालकर पनि खिंचते हैं । तो रस्सी हमेशा इस पत्थर पर घिसती हैं । उसके कारण ही यह निशान बन गया । तभी वरदराज उस महिला का जवाब सुनते ही बड़े ही सोच विचार मे पड़ गया । उसने विचार किया ! कि जब एक कोमल रस्सी के बार - बार आने - जाने से एक ठोस पत्थर का आकार भी बदल सकता हैं । तो निरंतर अभ्यास करने से मैं भी बदल सकता हूँ । अब वरदराज खुशी- खुशी गुरुकुल मे आया , " और अपनें गुरुजी को कुएं और रस्सी वाली सारी बात बताई , फिर वरदराज ने कहा , कि गुरुजी मैं भी अब निरंतर अभ्यास करूंगा , और एक दिन मैं अपनें आप को बदल कर दिखाऊँगा । वरदराज का इतना हौंसला देखकर , " गुरुजी को बहुत खुशी हुई व उन्होंने वरदराज को शिक्षा देने मे बहुत सहयोग दिया "अब वरदराज ने हार नहीं मानी । और खूब मन व ध्यान लगाकर शिक्षा प्राप्त की । देखते ही देखते ! " जिस वरदराज को सब मंदबुद्धि बालक कहते थे , वह वरदराज आगे चलकर संस्कृत व्याकरण का महान विद्वान बना । जिसने -- लघुसिद्धांतकौमुदी -- मध्ययसिद्धांतकौमुदी -- गीर्वाणपदमंजरी की रचना की कहानी से शिक्षा
दोस्तों , निरंतर प्रयास ही सफलता की कुंजी हैं । अगर आप भी खुद को किसी भी कार्य मे कमजोर समझते हो , तो ये आपकी भूल हैं , कमजोर हम या हमारा दिमाग नहीं बल्कि कमजोरी अगर है , तो वो हैं हमारे हौसलें मे , हमारी मेहनत मे , अगर हम निरंतर प्रयास करें तों हमे जीवन में आगे बढ़नें से कोई भी नहीं रोक सकता । … धन्यवाद