1857 की क्रांति का इतिहास » History Of The Revolution Of 1857 । The War Of Revolt Of 1857 ।

History Of The Revolution Of 1857 । The War Of Revolt Of 1857 ।

1857 की क्रांति का इतिहास – History Of The Revolution Of 1857

» 18 वी सदी के मध्य से ही राजाओ और नवाबों की ताकत छीनने लगी थी, उनकी सत्ता और सम्मान दोंनो खत्म होते जा रहे था, बहुत सारे दरबारों मे रेजिडेंट तैनात किये गए थे । स्थानीय शासको की स्वतंत्रता धरती जा रहे  थे। उनकी सेनाओ को भंग किया गया था। उनके राजस्व वसूली के अधिकार वेला के एक-एक करके छीने जा रहे थे। मे बहुत सारे स्थानीय शासकों ने अपने हीतो की रक्षा के लिए कंपनी के साथ बातचीत भी की ।

» उदाहरण के लिए झांसी कि रानी लक्ष्मी बाई चाहती थी की कंपनी उनके पति की मृत्यु के बाद उनके गोद लिए बेटे को राजा मान लें पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र नाना साहब ने भी कंपनी से आग्रह किया। की उनके पिता को जो पेंशन मिलते थे। वह मृत्यु के बाद उन्हे मिलने लगे अपनी श्रेष्ठ तथा सैनिक ताकत के नशे मे चूर कंपनी ने इन निवेदन को ठुकरा दिया। अवध की  रियासत अंग्रेजों के कब्जे मे जाने वाले आखिरी प्रयास मे से एक थी ।

» 1801 मे अमित पर एक सहायक संधि शौपी गई । और 1857 मे अंग्रेजों ने उसे अपने कब्जे मे ले लिया। की गवर्नर जनरल लार्ड  डलहौजी ने ऐलान कर दिया। की रियासत प्रशासन ठीक से नही चढ़ाया  जा रहा है, इसलिए शासन को दुरुस्त करने  के  लिए ब्रिटिश प्रभु जरूरी  है, यानि अंग्रेज  सभी रियासतों पर अपना कब्जा चाहते थे। की कंपनी ने मुगलों के शासन को खत्म करने की भी पूरी योजना बना ली।

» अब कंपनी द्वारा जारी किये गए, सिक्कों पर से मुगल बादशाह का नाम हटा दिया गया। 1849 मे गवर्नर  जनरल लॉर्ड डलहौजी ने ऐलान कर दिया की , बहादुर  शाह जफर की मृत्यु के बाद बादशाह के परिवार को लाल किले से निकालकर उसे दिल्ली मे कही  और बसाया जाएगा । 1856 मे गवर्नर  जनरल कैनिग ने फैसला लिया. की बहादुर शाह जफर आखिरी मुगल बादशाह होंगे, उनकी मृत्यु के बाद उनके किसी भी वंशज को भाषा नही माना जाएगा।

» उन्हे केवल राजकुमारों के रूप मे मान्यता दी जाएगी। और इस तरह अग्रेजों ने एक – एक कर रियासतों का अंत किया और अपना स्वामित्व पूरे भारत मे स्थापित किया, की किसान और सिपाही गाव मे किसान और  जमीदार भारी – भरकम लगान वसूली के सख्त तौर – तरीके से परेशान थे, बहुत सारे लोग महाजनों से लिए कर्ज नही लौटा पा रहे थे। इसके कारण उनकी  पीड़ीतो पुरानी जमिने हाथ से निकलती जा रहे थे। की कंपनी कए तहत काम करने वाले भारतीय सिपाहियों के असंतोष की अपनी वजह थी वे अपने वेतन भत्तों और सेवा शर्तों के कारण परेशान थी। कई नये नियम उनकी धार्मिक भावनाओ और आस्था को ठेस पहुंचते थे।

» आपको जान कर हैरानी होगी की उस समय बहुत सारे लोग समुद्र पार नही जाना चाहते थे , उन्हे लगता था,की समुद्री यात्रा से उनका धर्म और जाति भ्रष्ट हो जाएंगे । जब 1824 मे सिपाहियों को कंपनी को ओर से लड़ने के लिए समुद्र के रास्ते वर्मा जाने का आदेश मिल था तो, उन्होंने हुक्म मानने से इनकार कर दिया हालांकि उन्हे जमीन के रास्ते से जाने से ऐतराज नही था। सरकार का रुख न मानने के कारण उन्हे सख्त सजा दी गई। क्योंकि यह मुद्दा भी खत्म नही हुआ था। इसलिए 1806 मे कंपनी को एक नया कानून बनाना पड़ा।

» इस कानून मे साफ कहा गया था कि अगर कोई व्यक्ति कंपनी की  सेना मे नौकरी करेगा तो जरूरत पड़ने पर उसे समुद्र पार भी जाना पड़ सकता है , इसके अलावा सपा की गाव के हालात से भी परेशान थे बहुत सारे सिपाही खुद भी किसान थे वे, अपने परिवार गाँव छोड़कर आए थे। लिहाजा किसानों का गुस्सा जल्दी ही सिपाहियों मे भी फैल गया सुधारों पर प्रतिक्रिया अंग्रेजों को लगता था। कि भारतीय समाज को सुधारणा जरूरी है  सती प्रथा को रोकने और विधवा विवाह को बढ़ावा देने के लिए कानून बनाए गए ।

» अंग्रेजी भाषा की शिक्षा को जमकर प्रोत्साहन दिया गया 1830 के बाद कंपनी ने ईसाई मिशनरियों को खुलकर काम करने और यहाँ तक की  जमीन व संपत्ति जुटाने की भी आजादी दे दिया । साल 1850 मे एक नया कानून बनाया गया जिसे ईसाई धर्म को अपनाना और आसान हो गया इस कानून मे प्रावधान किया गया था कि अगर कोई भारतीय  व्यक्ति ईसाई धर्म अपना आता है तो  पुरखों की संपत्ति पर उसका अधिकार पहले जैसा ही रहेगा अंग्रेजों की नीतियों से बहुत सारे भारतीयों को यकीन हो गया था ।

» की अंग्रेज उनका धर्म और उनकी सामाजिक अब्बास और परंपरागत जीवनशैली को नष्ट कर रहे  हैं , सैनिक विद्रोह बना धंधा हो है , हलाकी शासक को प्रजा के बीच संघर्ष कोई नई बात नही है, लेकिन कभी- कभी यह संघर्ष इतने फैल जाते है,कि राज्य की सत्ता छिन्न -भिन्न हो जाती  है , भारत के उत्तरी भागों मे 1857 मे ऐसी ही स्थिति पैदा हो गई । अ के पत्ते और शासन के सौ साल बाद ईस्ट इंडिया कंपनी को एक बाहरी वृद्धों से जूझना पड़ रहा था ।

» मै 1857 मे शुरू हुई बगावत नही भारत मे अंग्रेजों के अस्तित्व को ही खतरे मे डाल दिया था। मेरठ से शुरू हुई बगावत आगे चलकर भारत के अलग – अलग शहरो तक फैल गई समाज के विभिन्न तबकों के असंख्य लोग विद्रोही तेवरों के साथ उठ खड़े हुए कुछ लोग मानते है की, 19 वी सदी मे उपनिवेशवाद के खिलाफ दुनिया भर मे यह सबसे बड़ा  सशस्त्र संघर्ष था। मै मेरठ से दिल्ली तक आ मे 29 मार्च 1857 को युवा सिपाही मंगल पांडे को बैरकपुर मे अपने अफसरों पर हमला करने के आरोप मे फांसी पर लटका दिया गया।

» चंद दिनों बाद मेरठ मे तैनात सिपाहियों ने नये कार्यों के साथ पहुँची । अभ्यास करने से इनकार कर दिया सिपाहियों को लगता था। की उनका दोस्तों पर गाय और सूअर की चर्बी का लेट चढ़ाया गया था, इसके चलते 85 सिपाहियों को नौकरी   से निकाल दिया गया। उन्हे अपने अफसरों का रुख ना मारने के आरोप मे 10-10 साल की सजा सुना  दी।

» यह 9 मार्च 1857 की बात है। , मेरठ मे तैनात दूसरे भारतीय सिपहियो के प्रतिक्रिया बहुत जबरदस्त रहे दस  मई को सिपाहियों ने मेरठ की जेल पर धावा बोलकर वहाँ बंद सिपाहियों को आजाद करावा लिया। उन्होंने अंग्रेज अफसरों पर हमला करके उन्हे मार गिराया। इसके अलावा उन्होंने बंदूक और हथियार अपने कब्जे मे ले लिए और अंग्रेजों को मारा तो वे संपत्तियों को आग के हवाले कर दिया।

» उन्होंने फिरंगियों के खिलाफ युद्ध का एलान कर दिया । की सिपाही पूरे देश  मे अंग्रेजों के शासन को खत्म करने पर आमादा हो गए थे लेकिन,सवाल यह था की अंग्रेजों के  जाने के बाद देश का शासन कौन चलाएगा , सिपाहियों ने इसका भी जवाब ढूंढ लिया , वे मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर को फिर से सत्ता शौपना चाहते थे। मेरठ के कुछ सिपाहियों की एक टोली दस मई की रात को घोड़ों पर सवार होकर अंधेरे मे ही दिल्ली पहुँच गए, जैसे ही उनके आने की खबर फैली दिल्ली मे तैनात टुकड़ियों ने भी बगावत कर दी।

» यहाँ भी कई अंग्रेज अफसर मारे गए देसी सिपाहियों ने हथियार व गोला – बारूद अपने कब्जे मे ले लिया और इमारतों को आग दी इसके बाद विजई सिपाही लाल किले की दीवारों के आसपास जमा हो गए व्यसाय से मिलना चाहते थे, बादशाह अंग्रेजों की भारी ताकत से दो-दो हाथ करने के लिए तैयार नही थे, लेकिन सिपाही भी अड़े रहे आखिरकार वे जबरन महल मे घुस गए और उन्होंने बहादुरशाह जफर को अपना नेता घोषित कर दिया।

» एक बूढ़े भाषा को सिपाहियों की माँग माननी पड़ी उन्होंने देशभर के शासकों और मुखिया को चिट्ठी लेकर अंग्रेजों से लड़ने के लिए भारतीय राज्यों का एक संघ बनाने का आह्वान किया बहादुरशाह जफर के एक मात्र कम के गहरे परिणाम सामने आए अंग्रेजों से पहले देश के एक बहुत बड़े हिस्से पर मुगल साम्राज्य का ही शासन था। ज्यादातर शासक और रजवाड़े मुगल बादशाह के नाम पर ही अपने लाखों का शासन चलाते थे ।

» अंग्रेजी शासक और रजवाड़े मुगल बादशाह के नाम पर ही अपने लाखों का शासन के विस्तार से भयभीत ऐसे  बहुत सारे शासकों को लगता था की अगर मुगल बादशाह दोबारा शासन स्थापित कर लें तो वह मुगल आधिपत्य मेड दो बार आपने लाखों का शासन बेफिक्र होकर चला पाएंगे है। उधर अंग्रेजों को इं घटनाओ की उम्मीद नही थी उन्हे, लगता था की , कार्यों के मुद्दे पर पैदा युद्ध पोर्टल कुछ समय मे ही शांत हो जाएगी , लेकिन जब बहादुर शाह जफर ने बगावत को अपना समर्थन दे दिया तो स्थिति रातोंरात बदल गई थी ।

» इसमे अक्सर ऐसा होता है की जब लोगों को उम्मीद की नई किरण दिखने लगती है तो उनका गुस्सा और क्रोध  बढ़ जाता है कि इससे उन्हे आगे बढ़ने की हिम्मत उम्मीद और आत्मविश्वास मिलता है, बगावत फैलने लगी, दिल्ली से अंग्रेजों के पैर उखड़ गए तो लगभग एक हफ्ते तक कही और विद्रोह फैलने मे कुछ समय लग्न ही था लेकिन इसके बाद तो विद्रोह  का सिलसिला शुरू हो गया एक के बाद के एक हर रोज मे सिपाहियों  ने विद्रोह कर दिया।

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» और दिल्ली,लखनऊ,कानपुर जैसे बिं दुओ पर दूसरे  का साथ देने पड़े , उनकी देखा-देखि कस्बों और गाँव के लोग भी बगावत के रास्ते पर चलने लगे वे स्थानीय नेताओ जमींदार और मुखिया के पीछे संगठित हो गए।यह लोग अपनी सत्ता स्थापित करने और अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए तैयार हैं, की स्वर्गीय पेशवा बाजीराव के दत्तक पुत्र नाना साहब कानपुर के पास रहते थे। उन्होंने सेना को संगठित किया। और अंग्रेजों को शहर से खदेड़ दिया।

» उन्होंने खुद को पेशवा घोषित कर दिया। और ऐलान किया की, वह बादशाह बहादुर शाह जफर के तहत  गवर्नर है लखनऊ की गद्दी से हटा दिए गए। बिरजिस कद्र ने भी बहादुर शाह जफर को अपना भाषा मान लिया । उनकी माँ बेगम हजरत महल लें अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह को बढ़ावा देने मे बढ़ -चढ़कर हिस्सा लिया। झांसी की रानी लक्ष्मी बाई भी अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोही सिपाहियों के साथ जा मिले ।

» उन्होंने नाना साहब के सेनापति तात्या टोपे के साथ मिलकर अंग्रेजों को भारी चुनौती दी , मध्य प्रदेश के अलावा  क्षेत्र मे राजगढ़ की रानी अवन्ती   बाई लोधी ने चार हजार सैनिकों की सेना तैयार की । और अंग्रेजों की  खिलाफ उसका नेतृत्व किया। क्योंकि ब्रिटिश शासन ने उनके राज्य  के प्रशासन पर भी नियंत्रण कर लिया।  झाल विद्रोह टुकड़ियों के सामने अंग्रेजों की संख्या बहुत कम थी बहुत सारे मोर्चों पर उनकी जबरदस्त हर हुई ।

» इससे लोगों को यकीन हो गया  की अब अंग्रेजों कअ शासन खत्म हो चुका है अब लोगों को विद्रोह मे कुछ पढ़ने  का  गहरा आत्मविश्वास मिल गया था, की खासतौर से अवध के इलाके मे चौतरफा बगावत की स्थिति थी। 6 अगस्त 1857  को लेफ्टिनेंट कर्नल टाईटलर ने अपने कमांडर – इन – चीफ को टेलीग्राम  भेजा । जिसमे उसने अंग्रेजों के बैंकों  व्यक्त किया था। हमारे लोग विद्रोहियों की संख्या पर लगातार लड़ाइयों से थक गए हैं। एक गाँव हमारे खिलाफ हिय, जमींदार भी हमारे खिलाफ हैं, इस दौरान बहुत सारे महत्वपूर्ण नेता सामने आए उदाहरण के लिए फैजाबाद के मौलवी अहमदुल्ला शाह ने भविष्यवाणी कर दी।

» की अंग्रेजों  का  शासन जल्दी ही खत्म हो जाएगा मै  समझ चुके थे की  जनता क्या चाहती है इसी आधार पर उन्होंने अपने समर्थकों की एक विशाल संख्या जुटा ली। अपने  समर्थकों के साथ ही अंग्रेजों से लड़ने के लिए लखनऊ पहुँच गए। दिल्ली मे अंग्रेजों कअ सफाया करने के लिए बहुत सारे गाजी यानि धर्म योद्धा  इकट्ठा हो गए।  बरेली के सिपाही वक्त  खान  ने लड़ाकों की एक विशाल टुकड़ी के साथ दिल्ली की ओर  कूच कर दिया। की बेस बगावत मे एक मुख्य व्यक्ति साबित हुए।

» बिहार के पुराने जमींदार कुवर सिंह ने भी विद्रोही सिपाहियों कअ साथ दिया, और महीनों तक अंग्रेजों के साथ लड़ाई लड़ी तमाम इलाके के नेता और लड़के इस युद्ध मे हिस्सा ले रहे थे,।  अंग्रेजों का पलटवार की इस  उथल – पुथल के बावजूद अंग्रेजों  ने हिम्मत नही तोड़ी,  कम्पनी ने अपनी पूरी ताकत लगाकर विद्रोह को कुचलने का फैसला लिया।  उन्होंने  इंग्लैंड से और फौजी मँगवाए , विद्रोहियों को जल्दी सजा देने के लिए नये कानून बनाए गए।

» और विद्रोह के मुख्य केंद्र पर धावा बोला गया। सितंबर 1857 मे दिल्ली दुबारा अंग्रेजों के कब्जे मे आ गई। अंतिम मुगल बाद शाह बहादुर शाह जफर पर मुकदमा चलाया गया , और उन्हे आयाजेवन कारावास की सजा दी गई। उनके बेटों की  आखों के सामने गोली मार दी गई बहादुर शाह जफर और उनकी पत्नी बेगम जीनत महल को अक्टूबर 1858 को रंगून जेल मे भिजवा दिया गया मै इसी जेल मे 1864 मे बहादुर शाह जफर ने अपनी अंतिम सांस ली ।

» दिल्ली पर अंग्रेजों  का कब्जा हो जाने का यह मतलब नही था की विद्रोह खत्म हो चुका था। इसके बाद भी लोग अंग्रेजों से टक्कर लेते  रहे व्यापक बगावत की विशाल ताकत को कुचलने के लिए अंग्रेजों के अगले दो  सालों तक लड़ाई  लड़नी पड़े मार्च 1858 मे लखनऊ अंग्रेजों के कब्जे मे चला गया जून 1858 मे रानी लक्ष्मी बाई की शिकस्त हुई और उन्हे मार दिया गया। दुर्भाग्यवश ऐसा ही रानी अवंती बाई लोधी के साथ भी हुआ।

» खेड़ी की शुरुआत बजे के बाद उन्होंने अपने आपको अंग्रेजी फौज से घिरा पाया  और वह शहीद हो गई तात्या टोपे मध्य भारत के जंगलों मे रहते हुए आदिवासियों और किसानों की मदद से छापामार युद्ध चलाते रहे जिस तरह पहले अंग्रेजों के खिलाफ मिली सफलताओ से विद्रोहियों को सा मिला था , उसी तरह विद्रोह ताकतों की हार से लोगों की हिम्मत टूटने लगे है , मे बहुत सारे लोगों ने विद्रोहियों कअ साथ छोड़ दिया। अंग्रेजों ने भी लोगों का विश्वास जीतने के लिए हर संभव प्रयास किये।

» उन्होंने वफादार भूस्वामियों के लिए इन नमो का ऐलान कर दिया उन्हे आश्वासन दिया गया । की उनकी जमीन पर उनके परंपरागत अधिकार बने रहेंगे जिन्होंने विद्रोह किया था। उनसे कहा गया की अगर वे अंग्रेजों के सामने समर्पण कर देते हैं और अगर उन्होंने किसी अंग्रेज की हत्या नही की है। तो वह सुरक्षित रहेंगे और जमीन पर उनके अधिकारों दावेदारी बनी रहेगी इसके बावजूद सैकड़ों सिपाहियों विद्रोहियों नवाबों और राजाओ पर मुकदमे चलाए गए और उन्हे फांसी पर लटका दिया गया का विद्रोह के बाद क्या हुआ।

» अंग्रेजों ने 1859 कि आखिर तक अपने देश पर दोबारा नियंत्रण पा लिया था। लेकिन अब वे पहले वाली नीतियों के सहारे शासन नही चला सकते थे। अंग्रेजों ने जो अहम बदलाव किये थे। वह इस प्रकार थे ब्रिटिश संसद ने 1858 एक नया कानून पारित किया और ईस्ट इंडिया कंपनी के सारे अधिकार ब्रिटिश सम्राज्य के हाथ मे सौंप दी है ताकि भारतीय मामलों को ज्यादा बेहतर ढ़न्ग से संभाला जा सके ब्रिटिश मंत्री मण्डल के सदस्य को भारत के मंत्री के रूप मे  नियुक्त किया गया।

» व उसे भारत के  शासन से संबंधित मामलों को संभालने का जिम्मा सौंपा गया उससे सलाह देने के लिए एक परिषद का गठन किया गया जिसे इंडिया काउंसिल कहा जाता  था । भारत के गवर्नर जनरल को वायसराय का पौधा दिया गया इस प्रकार उसे इंग्लैंड के राजा रानी का निजी प्रतिनिधि घोषित कर दिया। फलस्वरूप अंग्रेज सरकार ने भारत के शासन की जिम्मेदारी सीधे अपने हाथों मे ले लिया देश के सभी राज्यों कअ भरोसा दिया गया। भविष्य मे कभी उनके  जमीन पर कब्जा नहीं किया जाएगा ।

» उन्हे अपने रियासत अपने वंशजों यहाँ तक की दत्तक पुत्रों को   सौपने की छूट दे दी गई लेकिन उन्हे इस बात के लिए भी प्रेरित किया गया की रानी को अपना आधिपत्य स्वीकार करे इस तरह भारतीय शासकों को ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन शासन चलाने को छूट दे दी  गई ।

» सूचना मे भारतीय सिपाहियों का अनुपात कम  करने और यूरोपीय सिपाहियों की संख्या बढ़ाने का फैसला किया गया यह भी  तय किया गया कि अवैध बिहार मध्य भारत और दक्षिण भारत से सिपाहियों को भर्ती करने के बजाय अब  गोरखा सीखो और पठानों मे से ज्यादा सिपाही भर्ती किये जाएंगे अंग्रेजों ने फैसला किया की वे भारत के लोगों के धर्म और सामाजिक रीति – रिवाज का सम्मान करेंगे भूस्वामी और जमींदारों की रक्षा करने तथा जमीन पर उनके अधिकारों को स्थायित्व देने के लिए नई नितिया बनाई गई। की इस प्रकार 1857 के इतिहास का एक नया चरण शुरू हुआ था ।

Author: Hindi Rama

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