
» एक समय की बात हैं । महात्मा बुद्धअपनी तपस्या में लिन थें । और उन्हें तपस्या में बैठे हुए कई दिन बित चूकें थें । तभी एक शिकारी उस रास्ते से जा रहा था । ” उस शिकारी ने महात्मा बुद्ध को पहचान लिया “। शिकारी नें महात्मा बुद्ध के बारे में बहुत बड़ाई सुनी थीं । किंतु वह महात्मा बुद्ध की बड़ाई से संतुष्ट नहीं था । उसनें बुद्ध की परीक्षा लेने के लिए सोचा । तभी वह बुद्ध के सामनें गया ।
» शिकारी पहलें तो महात्मा बुद्ध को एक छोटा सा पत्थर फेककर मारता हैं । किंतु महात्मा बुद्ध नें उस शिकारी को कुछ भी ना कहा, ” क्योंकि बुद्ध का मानना था , कि शरीर को तकलीफ होती हैं आत्मा को नहीं ” । अतः ! शिकारी द्वारा फेंके गए पत्थर के कारण बुद्ध के शरीर को तो कष्ट हुआ , किंतु आत्मा को नहीं । बुद्ध जैसे थें , वैसे ही बैठे रहें ।
» शिकारी कुछ समय तक सोचता रहा ” वो सोच रहा था , ” कि महात्मा बुद्ध कुछ तो उल्टा – सीधा कहेंगे “। मगर वह तो बस अपनी तपस्या में लीन थें । शिकारी नें फिर से पत्थर फेंका , ” वह पत्थर सीधा बुद्ध के आँखों के ऊपर जाकर लगा ” । और उस जगह से खून बहनें लगा ।
» महात्मा बुद्ध को आभास हुआ , ” उनके शरीर से रक्त बह रहा हैं ” किंतु वह फिर भी अपनी तपस्या से नहीं उठे । अब शिकारी को बहुत गुस्सा आ रहा था । और उसने पुनः एक पत्थर और महात्मा बुद्ध की ओर फेंका । महात्मा बुद्ध के शरीर से अब खून अधिक बहनें लगा ।
» इतनी पीड़ा , ” महसूस कर महात्मा बुद्ध की आँखों में से आँसू निकलनें लगा “।
» तभी शिकारी नें महात्मा बुद्ध के पास जाकर पूछा , ” आपकों जब मैंने पत्थर मारा तब आपनें कोई भी प्रतिक्रिया नहीं दी , व मुझे आपनें कुछ भी नहीं कहा ” महात्मा बुद्ध नें आँखों से आँसू बहते हुए भी , उस शिकारी को बड़ी ही सरलता से जवाब दिया । क्योंकि इससे मेरे शरीर को ही कष्ट हुआ हैं । मेरे मन , आत्मा और मस्तिष्क को नहीं ।
» बुद्ध की बात सुनकर , ” शिकारी अचंभित रह गया ” उसनें पूछा , फिर आपकी आँखों से आँसू क्यों बह रहें हैं । इस पर महात्मा बुद्ध नें कहा , कि तुम्हारे द्वारा किये गए , अनुचित कार्य के परिणाम के बारें में मेरा मस्तिष्क मेरी आत्मा से विचार कर , रो रही थीं ।
» आज तुम मुझे पत्थर मार रहें हो , ” कल कोई मुझे गाली भी देगा , तो भी मैं उसे कुछ नहीं कहूँगा ” वह एक बार गाली देगा , या दस बार , ” मेरी आत्मा उसे ग्रहण ही नहीं करेगी ” व जब मैं उसे कुछ नहीं कहूँगा , और उस गाली को मजबूरन उसे ही ग्रहण करना होगा । फिर बादमे उसे भी बहुत पछतावा जरूर होगा । यही मेरी तपस्या का एक हिस्सा हैं । मुझे हर एक इंसान को बदलना हैं ।
» लेकिन लड़ाई या युद्ध से नहीं , ” बल्कि नम्रता से , प्यार से एक दिन वह एक अच्छा इंसान बनकर ही रहेगा ।
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» महात्मा बुद्ध की बातों को सुनकर , ” शिकारी रोता व पछताता हुआ ” बुद्ध के चरणों मे गिर गया । और फिर बोला , कि हे बुद्ध मुझे क्षमा कर दीजिए । मैंने आपकी परीक्षा लेने के चक्कर में आपको बहुत कष्ट दिया हैं । आप मुझे जो भी सजा देंगें , वह मुझे मंजूर हैं ।
» महात्मा बुद्ध नें कहा , ” कि हे बंधु मुझे , तुम्हारे दिए हुए कष्ट से , अगर तुम्हारा जीवन बदल रहा हैं , तो ऐसे अनेक कष्ट मैं सहने को तैयार हूँ ” । शिकारी ने कहा बस कीजिए महात्मा जी , अब मैं आपको कभी कोई कष्ट नहीं पहुचाऊँगा ।
» सच में आपनें मुझ जैसे पापी इंसान को बदल कर , मुझपर बहुत बड़ा ऐहसान किया हैं । ” आज से मैं भी आपका , एक सच्चा शिष्य बनुगा , और आपकी दी हुई शिक्षा पर , मैं हमेशा अमल करूंगा “।
» तभी बुद्ध ने उसे आशीर्वाद दिया , ” और कहा तुम्हें नहीं पता , कि तुम्हें बदलता देख मैं कितना खुश हूँ ” जाओ अब तुम सदेव खुश रहोगे । और हमेशा अच्छे ही क्रम करना । क्योंकि इंसान के क्रम ही उसके साथ रहते हैं , और कर्म ही मरनें के बाद भी उसके साथ ही जाते हैं ।
» बुद्ध के इस ज्ञान से शिकारी को जीवन का बहुत बहुत बड़ा ज्ञान मिल गया था । और अब वह हमेशा ही बुद्ध के सिखाए हुए रास्ते पर ही चलता था ।
आपका शुक्रिया ।