माँ सती की पूरी कहानी • कैसे हुई माँ सती की मृत्यु – Full Story Of Mata Sati । Mata Sati Story In Hindi ।

माँ सती की पूरी कहानी • कैसे हुई माँ सती की मृत्यु - Full Story Of Mata Sati । Mata Sati Story In Hindi । Hindirama.com

माँ सती की पूरी कहानी • कैसे हुई माँ सती की मृत्यु – Full Story Of Mata Sati

» माता सती स्वयं देवी आदिशक्ति का रूप थी जिसे उनके पिता राजा दक्ष ने कठोर तपस्या के बाद प्राप्त किया था । राजा दक्ष की और भी कई पुत्रियाँ थी लेकिन सती कअ स्वयं देवी भगवती का रूप होने के कारण वह सबसे सुंदर व अलौकिक थी। माता सती बचपन से ही भगवान शिव की सादगी व पवित्रता से बहुत आस्तक थी।

शिव जी को  अपने पति रूम मे प्राप्त करने के लिए माता सती ने उनकी भक्ति व आराधना शुरू कर दी। बस इसी के बाद से ही अनहोनी होनी शुरू हो गई। यहाँ हम आपके सभी प्रश्नों जैसे की, सती का अंग कहाँ गिरा इत्यादि का उत्तर देने वाले  है। आईए पढ़ते है सती माता की कहानी।

शिव और माता सती की कहानी  

» माता सती को भगवान शिव अत्यधिक पसंद थे और वे उन्ही से ही विवाह करना चाहती थी। अब शिव जी तो वैरागी थे और उनका किसी भी चीज या किसी व्यक्ति से कोई मोह माया नही था । इसलिए माता  सती के द्वारा भगवान शिव को पति रूप मे प्राप्त करना बहुत कठिन था। इसके लिए शव जी को प्रसन्न करने के लिए उनकी भक्ति  करनी  शुरू कर दी।

» अपने प्रति इस निश्छल प्रेम को देखकर शिव का मन भी माता सती के प्रति आस्तक हो गया । इसके बाद शिव ने सती को अपनी पत्नी रूम मे स्वीकार कर लिया । दूसरी ओर, राजा दक्ष शिव को सती के लिए योग्य वर नही मानते थे । क्योंकि शिव पहाड़ों पर बिना किसी सुख- सुविधा के आदिवासियों के जैसे जीवनयापन करते थे । माता सती ने अपने पिता दक्ष की आज्ञा के विरुद्ध जाकर शिव से विवाह किया था।

राजा दक्ष और शिव  

» एक बार भगवान ब्रह्मा ने यज्ञ का आयोजन किया था । इसमे सभी देवतागण व  महान ऋषियों को बुलाया गया था । इस यज्ञ मे स्वयं महादेव भी आए थे । जब दक्ष प्रजापति इस यज्ञ मे पहुंचे तब सभी देवता उनके सम्मान मे खड़े हो गए किंतु भगवान शिव खड़े नही हुए ।

» यह देखकर दक्ष को अपना अपमान महसूस हुआ। उन्होंने वही पर सभी के सामने शिव को भला बुरा कहा किंतु शिव ने उनसे कुछ नही कहा। भगवान शिव अपने मन मे वैराग्य का भाव रखते थे। इसलिए उन्हे किसी भी प्रकार का माया , ईर्ष्या , अपमान का अंतर नही पड़ता था ।

दक्ष का यज्ञ 

» उसके कुछ दिनों के पश्चात राजा दक्ष ने भी एक विशाल यज्ञ का आयोजन करवाया। इसमे समस्त देवी  – देवता व ऋषियों को न्योता दिया गया था किंतु दक्ष ने स्वयं महादेव व अपनी पुत्री सति को नही बुलाया था। इस बात से सती अनभिज्ञ थी कितू उन्होंने आकाश मार्ग से देवताओ को जाते हुए देखा तो जिज्ञास्यपूर्वक अपने पति से इसका कारण पूछा।

» सती माता की कहानी मे जो अनहोंनी हुई थी, वह इसी यज्ञ से ही शुरू हुई थी। वह इसलिए क्योंकि ना तो सती माता इस यज्ञ मे  जाती , ना ही उन्हे आत्म – दाह करना पड़ता और ना ही भगवान शिव के जीवन मे इतना दुःख आता ।

माता सती का यज्ञ मे जाना 

» माता सती के पूछने पर शिव ने उन्हे राजा दक्ष के द्वारा आयोजित किये गए यज्ञ की बात बताई तो माता सती ने उनसे पूछा की क्या इस यज्ञ मे हमे नहीं बुलाया गया, शिव ने उस दिन की सारी बात सती को बताई और कहा की वे हमसे ईर्ष्या व वैमनस्य भाव रखते हैं, इसलिए हमे वहाँ नही बुलाया गया है।

» फिर भी माता सती ने वहाँ जाने का आग्रह किया । शिव को किसी अनहोनी के होने का डर था। इस पर माता सती ने उन्हे अपनी दस महाविद्या के दर्शन दिए। इन्हे देखकर भगवान शिव ने माता सती को राजा दक्ष के यज्ञ मे जाने की अनुमति दे दी। इसके तुरंत बाद माता सती दक्ष के यज्ञ मे जाने के लिए निकल पड़ी थी।

सती का आत्मदाह 

» वहाँ पहुंचकर सती ने देखा की उन्हे देख कर उनके पिता को बिल्कुल भी प्रसन्नता नही हुई। इसी के साथ माता सती यज्ञ स्थल पर भगवान शिव का स्थान ना देखकर नाराज हो गई। उन्होंने पिता दक्ष से इसका कारण पूछा तो उन्होंने भगवान शिव का अपमान किया। राजा दक्ष ने शिव को भरी सभा मे भगवान मानने से मना कर दिया । उन्होंने कहा की वह तो भूतों के राजा हैं जो पहाड़ों पर नग्न अवस्था मे रहते हैं व मेरी पुत्री को भी बिना गहनों व शृगार के रखते हैं।

» अपने पति का सभी के सामने ऐसा अपमान देखकर सती अत्यंत क्रोधित हो गई। सभा मे शिव के अपमान के बाद भी समस्त देवता व ऋषियों के चुप रहने कए कारण उनका क्रोध अत्यधिक बढ़ गया । इसी क्रोध मे माता सती उस यज्ञ मे अपने शरीर की आहुति देने के  लिए उस ज्वाला मे कूद पड़ी। यह देख सब जगह हाहाकार मच गया।

माता सती की मृत्यु कैसे हुई ? 

» राजा दक्ष के यज्ञ कुंड की अग्नि मे  माता सती कए कूद जाने को हम सभी सती के आत्म दहन के नाम से जानते हैं। यज्ञ कुंड की अग्नि बहुत तेज थी। अपने पति का अपमान नही सह पाने के कारण ही माता सती ने उस कुंड मे कूदने का निर्णय लिया था । जैसे ही माता सती उसमे कूदी , उनके शरीर ने आग पकड़ ली और उनकी मृत्यु हो गई । इस तरह से माता सती की कथा का अंत तो यही हो गया था लेकिन अब आपको भगवान शिव का रोद्र व मार्मिक दोनों रूप देखने को मिलेंगे ।

» जैसे ही भगवान शिव को इसके बारे मे पता चला तो वे अग्नि की तेज गति से यज्ञ की ओर दौड़ पड़े। वहाँ पहुँच कर जब भगवान शिव ने अपनी पत्नी सती का जला हुआ मृत शरीर देखा तो उनका शरीर  फूंफकारने लगा। उनके इसी क्रोधित रूप मे से वीरभद्र  का जन्म हुआ । जिसने सम्पूर्ण यज्ञ को तहस- नहस कर दिया । इसी के  साथ ही वीरभद्र ने दक्ष प्रजापति का सिर धड़ से काटकर अलग कर दिया था ।

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सती का अंग कहाँ कहाँ गिरा ?  

» जब भगवान शिव ने राजा दक्ष का भी वध कर दिया तब उनका ध्यान फिर से पत्नी पर गया । माता सती की मृत्यु हो चुकी थी और उनका अधजला शरीर यज्ञ कुंड मे पड़ा हुआ था । यह देख कर शिव का क्रोध भयानक पीड़ा मे बदल गया था । उन्होंने तुरंत माता सती के अधजले शरीर को यज्ञ कुंड से निकाला और अपने सीने  से लगा लिया । इसके बाद वे दसों दिशाओ मे उनके मृत शरीर को लेकर पागलों की तरह दौड़ने लगे।

» वर्तमान  मे उन्ही स्थानों पर माँ आदिशक्ति के 51 शक्तिपीठ स्थापित हैं जहां हर वर्ष करोड़ों की संख्या मे श्रद्धालु आते हैं। यह शक्तिपीत वर्तमान भारत्व मे ही नही पड़ते बल्कि यह पूर्व के अविभाजित भारत मे आते हैं । इसमे आतंकी देश पाकिस्तान , अफगानिस्तान , बांग्लादेश , नेपाल , इत्यादि सम्मिलित हैं।

शिव के आँसुओ से बना कुंड 

» सती के शरीर के टुकडे होने के बाद भी भगवान शिव का दुःख कम नही हुआ । सती के 51 अंग जहाँ जहाँ भी गिरे , वहाँ उनके साथ भगवान शिव के भैरव अवतार भी हुए ताकि वे उनकी रक्षा कर सके। इसके बाद भगवान शिव सती की याद मे इतना रोए थे की उनके आँसुओ से दो कुंड का निर्माण हुआ । इसमे से एक कुंड राजस्थान के पुष्कर मे स्थित है तो दूसरा कुंड पाकिस्तान के कतासराज मंदिर मे।

» कुछ दिनों के पश्चात भगवान शिव का दुःख  कम हुआ तो उन्होंने फिर से सब मोहमाया का पूर्ण रूप से त्याग कर दिया था । इसके बाद वे लंबी साधना मे चले गए थे जिसमे वे वर्षों वर्ष तक रहे थे। उनकी साधना के दौरान ही माता सती का पार्वती के रूप मे पुनर्जन्म हुआ था । माता पार्वती ने पुनः उन्हे पति रूप मे प्राप्त करने के लिए वर्षों की कठोर तपस्या की थी। इसके बाद शिव उन्हे पुनः पति रूप मे प्राप्त हुए थे ।

निष्कर्ष  

» इस तरह से आज के इस लेख के माध्यम से आपने माता सती की कथा को सम्पूर्ण रूप मे जान लिया है। इस कहानी को  सुनकर हमे भगवान शिव के क्रोधित और मार्मिक रूप का पता चलता है। साथ ही प्रेम और वैराग्य का संगम भी दिखाई देता है । वह भगवान शिव ही थे जो किसी से भी मोहमाया का भाव नही रखते थे और वे भी भगवान शिव ही थे जो अपनी पत्नी की मृत्यु के पश्चात इतना रोए थे की उससे दो कुंड का निर्माण हो गया था ।

Author: Hindi Rama

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