
।। श्री बृहस्पति वृत कथा ।। Guruvar Vrat Katha ।।
» भारतवर्ष मे एक प्रतापी और दानी राजा राज्य करता था। वह नित्य गरीबों और ब्राह्मणों की सहायता करता था। यह बात उसकी रानी को अच्छी नहीं लगती थी, वह न ही गरीबों को दान देती, न ही भगवान का पूजन करती थी और राजा को भी दान देने से मना किया करती थी।
» एक दिन राजा शिकार खेलने वन को गए हुए थे, तो रानी महल मे अकेली थी। उसी समय बृहस्पति साधु वेष मे राजा के महल मे भिक्षा के लिए गए और भिक्षा मांगी रानी ने भिक्षा के लिये गए और भिक्षा देने से इंकार किया और कहाः हे साधु महाराज मै तो दान पुण्य से तंग आ गई हूँ। मेरा पति सारा धन लुटाते रहिते हैं। मेरी इच्छा है कि हमारा धन नष्ट हो जाए फिर न रहेगा बांस न बजेगी बाँसुरी ।
» साधु ने कहा: देवी तुम तो बड़ी विचित्र हो। धन, संतान तो सभी चाहते है। पुत्र और लक्ष्मी तो पापी के घर भी होने चाहिये । यदि तुम्हारे पास अधिक धन है तो भूखों को भोजन दो, प्यासों के लिए प्याऊ बनवाओ , मुसाफिरो के लिए धर्मशालाये खुलवाओ । जो निर्धन अपनी कुवारी कन्याओ का विवाह नहीं कर सकते उनका विवाह करा दो । ऐसे और कई काम है जिनके करने से तुम्हारा यश लोक- परलोक मे फैलेगा।।
» परंतु रानी पर उपदेश का कोई प्रभाव न पड़ा। वह बोली – महाराज आप मुझे कुछ न समझाए । मै ऐसा धन नहीं चाहती जो हर जगह बांटती फिरू। साधु ने उत्तर दिया यदि तुमहरी ऐसी इच्छा है टों तथास्तु! तुम ऐसा करना की बृहस्पति को घर लीपकर पीली मिट्टी से अपना सिर धोकर स्नान करना, भट्टी चढ़ाकर कपड़े धोना, ऐसा करने से आपका सारा धन नष्ट हो जाएगा । इतना कहकर वह साधु महाराज वहाँ से आलोप हो गए।
» साधु के अनुसार कही बातों को पूरा करते हुए रानी को केवल तीन बृहस्पतिवार ही बीते थे, की उसकी समस्त धन – संपत्ति नष्ट हों गई । अब भोजन केे लिए भी राजा का परिवार तरसने लगा । तब एक दिन राजा ने रानी से बोला – हे रानी ! तुम यहीं रहों मैं दूसरे देश को जाता हूँ । क्योंकि यहाँ पर सभी लोग मुझे जानते हैं । इसलिए मैं यहाँ कोई छोटा कार्य नहीं कर सकता ।
» ऐसा कहकर राजा प्रदेश चला गया । वहाँ वह जंगल से लकड़ी काटकर लाता और शहर में बेचता इस तरह वह अपना जीवन व्यतीत करनें लगा । और इधर राजा के प्रदेश जाते ही रानी और दासी बहुत दुखी रहने लगी ।
» एक बार जब रानी और दासी को सात दिन तक बिना भोजन केे रहना पड़ा । तो रानी नें अपनी दासी से कहा – हे दासी ! पास ही केे नगर में मेरी बहिन रहती हैं । वह बड़ी ही धनवान हैं । तू उसके पास जा और कुछ ले आ, ताकि थोड़ी बहुत गुजर – बसर हो जाए ।
» दासी रानी की बहिन केे पास गई । उस दिन गुरुवार था । और रानी की बहिन उस समय बृहस्पतिवार व्रत कथा सुन रही थीं । दासी नें रानी की बहिन को अपनी रानी का संदेश दिया । लेकिन रानी की बड़ी बहिन नें कोई उत्तर नही दिया । जब दासी को रानी की बहिन से कोई उत्तर नही मिला । तो वह बहुत दुखी हुई । और उसे बहुत क्रोध भी आया । दासी नें वापस आकर अपनी रानी को उसकी बहिन की सारी बात बता दी ।
» दासी की सारी बात सुनकर रानी बहुत दुखी हुई , और अपने भाग्य को कोसने लगी । उधर रानी की बहिन सोचा । कि मेरी बहिन की दासी आई थीं । परंतु मैं उससे नही बोली । इससे वह बहुत दुखी हुई होगी ।
» कथा सुनकर और पूजन समाप्त करके वह अपनी बहिन कए घर आई । और कहने लगी – हे बहिन ! मैं बृहस्पतिवार का व्रत कर रही थीं । तुम्हारी दासी मेरे घर आई थीं । परंतु जब तक कथा होती , तब तक ना उठते हैं , और ना ही बोलते , इसलिए मैं नहीं बोली ।
» काहो ! तुम्हारी दासी मेरे पास क्यों गई थीं । रानी बोली – बहिन , तुमसे क्या छिपाऊँ , हमारे घर में खाने तक को अनाज नहीं था । ऐसा कहते हुए रानी की आँख भर आई । उसने दासी समेत पिछले सात दिनों से भूखे रहने तक की बात अपनी बहिन को विस्तार पूर्वक सुना दी ।
» रानी की बहिन बोली – देखो बहिन ! भगवान बृहस्पतिदेव सबकी मनोकामना को पूर्ण करते हैं । और देखो शायद तुम्हारे घर में अनाज रखा हों । पहलें तो रानी को विश्वास ही नहीं हुआ । पर बहिन केे आग्रह करने पर उसने अपनी दासी को अंदर भेजा तो उसे सचमुच अनाज से भरा एक घड़ा मिल गया । यह देखकर दासी को बड़ी ही हैरानी हुई ।
» दासी रानी से कहने लगी – हे रानी ! जब हमको भोजन नही मिलता तो हम व्रत ही तो करते हैं । इसलिए क्यों ना आपकी बहिन से व्रत और कथा की विधि पूछ ली जाए , ताकि हम भी व्रत कर सके । तब रानी नें अपनी बहिन से बृहस्पतिवार व्रत केे बारे में पूछा ।
» उसकी बहिन नें बताया बृहस्पतिवार कए व्रत में चने की दाल और मुन्नका से विष्णु भगवान का केले की जड़ में पूजन करें तथा दीपक जलाएं । पूरी व्रत कथा सुनें और पीला भोजन ही करें इससे बृहस्पतिवार प्रसन्न होते हैं व्रत और पूजन विधि बताकर रानी की बहिन अपने घर को लौट गई ।
» सात दिन केे बाद जब गुरुवार आया , तो रानी और दासी नें व्रत रखा घुड़साल में जाकर चना और गुड लेकर आई । फिर उससे केले की जड़ तथा विष्णु भगवान का पूजन किया । अब पीला भोजन कहाँ से आए , इस बात को लेकर दोनों ही बहुत दुखी थें चूंकि उन्होंने व्रत रखा था । इसलिए बृहस्पतिदेव उनसे प्रसन्न थें । इसलिए बृहस्पतिदेव एक साधारण व्यक्ति का रूप धारण कर दो थालों में सुंदर पीला भोजन दासी को दे गए ।
» भोजन पाकर दासी प्रसन्न हुई । और फिर रानी कए साथ मिलकर भोजन ग्रहण किया । उसके बाद वे सभी गुरुवार को व्रत और पूजन करने लगी । बृहस्पति भगवान की कृपा से उनके पास फिर से धन संपत्ति आ गई । परंतु रानी फिर से पहले की तरह आलस्य करनें लगी ।
» तब दासी बोली – देखों रानी ! तुम पहले भी इस प्रकार आलस्य करती थीं । तुम्हें धन रखने में कष्ट होता था । इस कारण तुम्हारा सारा धन नष्ट हो गया । और अब जब भगवान बृहस्पतिदेव की कृपा से धन मिला हैं । तो तुम्हें फिर से आलस्य होता हैं ।
» रानी को समझाते हुए दासी कहती हैं – ” कि बड़ी मुसीबतों कए बाद हमनें यह धन पाया हैं । इसलिए हमें दान – पुण्य करना चाहिए । भूखे गरीब मनुष्यों को भोजन कराना चाहिए । और धन को शुभ कार्यों में खर्च करना चाहिए । जिससे तुम्हारे कुल का यश बढ़ेगा , स्वर्ग की प्राप्ति होगी । और पित्र प्रसन्न होंगे । दासी की बात मानकर रानी अपना धन शुभ कार्यों में खर्च करने लगी ।
» जिससे पूरे नगर में उसका यश फैलने लगा ।
»एक दिन राजा दुःखी होकर जंगल मे एक पेड़ के नीचे आसन जमाकर बैठ गया। वह अपनी दशा को याद करके व्याकुल होने लगा। बृहस्पतिवार का दिन था, एकाएक उसने देखा की निर्जन वन मे एक साधु प्रकट हुए। वह साधु वेष मे स्वयं बृहस्पति देवता थे।
» लकड़हारे के सामने आकर बोले: हे लकड़हारे ! इस सुनसान जंगल मे तू चिंता मग्न क्यों बैठा है?
» लकड़हारे ने दोनों हाथ जोड़ कर प्रणाम किया और उत्तर दिया: महात्मा जी! आप सब कुछ जानते हैं, मै क्या कहूँ । यह कहकर रोने लगा और साधु को अपनी आत्मकथा सुनाई।
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गोगाजी महाराज की पूरी कहानी। Full Story Of Gogaji Maharaj। Hindi Kahani। Moral Stories In hindi।
» महात्मा जी ने कहा: तुम्हारी स्त्री ने बृहस्पति के दिन बृहस्पति भगवान का निरादर किया है जिसके कारण रुष्ट होकर उन्होंने तुम्हारी यह दशा कर दी। अब तुम चिंता को दूर करके मेरे कहने पर चलो तो तुम्हारे सब कष्ट दूर हो जाएंगे और भगवान पहले से भी अधिक संपत्ति देंगे । तुम बृहस्पति के दिन कथा किया करो। दो पैसे के चने मुनक्का लाकर उसका प्रसाद बनाओ और शुद्ध जल से लोटे मे शक्कर मिलाकर अमृत तैयार करो ।
» कथा के पश्चात अपने सारे परिवार और सुनने वाले प्रेमियों मे अमृत व प्रसाद बांटकर आप भी ग्रहण करो। ऐसा करने से भगवान तुम्हारी सब मनोकांनाए पूरी करेंगे । साधु के ऐसे वचन सुनकर लकड़हारा बोला: हे प्रभु! मुझे लकड़ी बेचकर इतना पैसा नही मिलता , जिससे भोजन के उपरांत कुछ बचा सकु। मैंने रात्री मे अपनी स्त्री को व्याकुल देखा है। मेरे पास कुछ भी नहीं जिससे मै उसकी खबर मँगा सकु।
» साधु ने कहा: हे लकड़हारे ! तुम किसी बात की चिंता मत करो। बृहस्पति के दिन तुम रोजाना की तरह लड़कियां लेकर शहर को जाओ। तुमको रोज से दुगुना धन प्राप्त होगा, जिससे तुम भली – भांति भोजन कर लोगे तथा बृहस्पतिदेव की पूजा का सम्मान भी आ जाएगा।
» इतना कहकर साधु अंतर्ध्यान हो गए। धीरे-धीरे समय व्यतीत होने पर फिर वही बृहस्पति का दिन आया। लकड़हारा जंगल से लकड़ी काटकर किसी शहर मे बेचने गया , उसे उस दिन और दिन से अधिक पैसा मिला।
» राजा ने चना गुड आदि लाकर गुरुवार का व्रत किया। उस दिन से उसके सभी क्लेश दूर हुए। परंतु जब दुबारा गुरुवार का दिन आया तो बृहस्पतिवार का व्रत करना भूल गया। इस कारण बृहस्पति भगवान नाराज हो गए।
» उस दिन उस नगर के राजा ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया तथा शहर मे यह घोषणा करा दी की कोई भी मनुष्य अपने घर मे भोजन न बनावे न आग जलावे समस्त जनता मेरे यहाँ भोजन करने आवे । इस आज्ञा को जो न मानेगा उसे फांसी की सजा दी जाएगी। इस तरह की घोषणा सम्पूर्ण नगर मे करवा दी गयी।
» राजा की आज्ञानुसार शहर के सभी लोग भोजन करने गए। लेकिन लकड़हारा कुछ देर से पहुँचा इसलिए राजा उसको अपने साथ घर लीवा ले गए ले जाकर भोजन करा रहे थे तो रानी की दृष्टि उस खूंटी पर पड़ी जिस पर उसका हार लटका हुआ था।
» वह वहाँ पर दिखाई नही दिया। रानी ने निश्चय किया की मेरा हार इस मनुष्य ने चुरा लिया है। उसी समय सिपाहियों को बुलाकर उसको कारागार मे डलवा दिया। जब लकड़हारा कारागार मे पड़ गया और बहुत दुखी होकर विचार करने लगा की न जाने कौन से पूर्व जन्म के कर्म से मुझे यह दुःख प्राप्त हुआ है , और उसी साधु को याद करने लगा जो की जंगल मे मिला था।
» उसी समय तत्काल बृहस्पतिदेव साधु के रूप मे प्रकट हुए और उसकी दशा और उसकी दशा को देखकर कहने लगे: अरे मूर्ख! तूने बृहस्पति देव की कथा नहीं करी इस कारण तुझे दुःख प्राप्त दुख प्राप्त हुआ है। अब चिंता मत कर बृहस्पतिवार के दिन कारागार के दरवाजे पर चार पैसे पड़े मिलेंगे।
» उनसे तू बृहस्पतिदेव की पूजा करना तेरे सभी कष्ट दूर हो जाएंगे । बृहस्पति के दिन उसे चार पैसे मिले। लकड़हारे ने कथा कही उसी रात्रि को बृहस्पतिदेव ने उस नगर के राजा को स्वप्न मे कहा: हे राजा! तुमने जिस आदमी को कारागार मे बंद कर दिया है। वह निर्दोष है।
» वह राजा है उसे छोड़ देना। रानी का हार उसी खूंटी पर लटका है। अगर तू ऐसा नही करेगा तो ,मै तेरे राज्य को नष्ट कर दूँगा। इस तरह रात्रि के स्वप्न को देखकर लकड़हारे को बुलाकर क्षमा माँगी तथा लकड़हारे को योग्य सुंदर वस्त्र – आभूषण देकर विदा कर दिया। बृहस्पतिदेव की आज्ञानुसार लकड़हारा अपने नगर को चल दिया।
» राजा जब अपने नगर के निकट पहुँचा तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। नगर मे पहले से अधिक बाग, तालाब, कुए , तथा बहुत सी धर्मशाला मंदिर आदि बन गई है। राजा ने पुछा यह किसका बाग और धर्मशाला है,अब लोग कहने लगे यह सब रानी और बंदी के है।
» तो राजा को आश्चर्य हुआ और गुस्सा भी आया। जब रानी ने यह खबर सुनी की राजा आ रहे हैं, तो उन्होंने बाँदी से कहा की: हे दासी देख राजा हमको कितनी बुरी हालत मे छोड़ गए थे । हमारी ऐसी हालत देखकर वह लौट न जाए। इसलिए तू दरवाजे पर खड़ी होजा।
» आज्ञानुसार दासी दरवाजे पर खड़ी हो गई। राजा आए तो उन्हे अपने साथ लिवा लाई। तब राजा ने क्रोध करके अपनी रानी से पूछा की यह धन तुम्हें कैसे प्राप्त हुआ है, तब उन्होंने कहा: हमे यह सब धन बृहस्पति देव के इस व्रत के प्रभाव से प्राप्त हुआ है।
» राजा ने निश्चय किया की सात रोज बाद तो सभी बृहस्पति का पूजन करते है, परंतु मै प्रतिदिन दिन मे तीन बार कहानी तथा रोज व्रत किया करूंगा। अब हर समय राजा के दुपट्टे मे चने की दाल बंधी रहती तथा दिन तीन बार कहानी कहता ।
» एक रोज राजा ने विचार किया की चलो अपनी बहिन के यहाँ हो आवे। इस तरह निश्चय कर राजा घोड़े पर सवार हो अपनी बहिन के यहाँ को चलने लगा। मार्ग मे उसने देखा की कुछ आदमी एक मुर्दे को लिए जा रहे है, उन्हे रोककर राजा कहने लगा: अरे भाइयों! मेरी बृहस्पति देव की कथा सुन लो।
» वे बोले:लो ! हमारा तो आदमी मार गया है, इसको अपनी कथा की पड़ी है। परंतु कुछ आदमी बोले: अच्छा कहो हम तुम्हारी कथा भी सुनेंगे । राजा ने दाल निकाली और जब जब कथा आधी हुई थी की मुर्दा हिलने लग गया और जब कथा समाप्त हो गई तो राम- राम करके मनुष्य उठकर खड़ा हो गया।
» आगे मार्ग मे उसे एक किसान खेत मे हल चलाता मिला । राजा ने उसे देखा और उससे बोले: अरे भईया! तुम मेरी बृहस्पति वर की कथा सुनो । किसान बोला जब तक मै तेरी कथा सुनूँगा तब तक चार हारैया जोत लूँगा।
» जा अपनी कथा किसी ओर को सुनाना इस तरह राजा आगे चलने लगा। राजा के हटते ही बैल पछाड़ खाकर गिर गए तथा किसान के पेट मे बड़ी जोर का दर्द होने लगा। उस समय उसकी माँ रोटी लेकर आई, उसने जब यह देखा तो अपने पुत्र से सब हाल पुछा और बेटे ने सभी हाल कह दिया तो बुढ़िया दौड़ी-दौड़ी उस घुड़सवार के पास गई और उससे बोली की मै तेरी कथा सुनूँगी तू अपनी कथा मेरे खेत पर चलकर हो कहना ।
» राजा ने बुढ़िया के खेत पर जाकर कथा कही , जिसके सुनते ही वह बैल उठ खड़े हुए तथा किसान के पेट का दर्द भी बंद हो गया, । राजा अपनी बहिन के घर पहुँचा । बहिन ने भाई की खूब मेहमानी की। दूसरे रोज प्रातः काल राजा जगा तो वह देखने की सब लोग भोजन कर रहे हैं।
» राजा ने अपनी बहिन से कहा: ऐसा कोई मनुष्य है जिसने भोजन नहीं किया हो, मेरी बृहस्पति वार की कथा सउन लें, । बहिन बोली : हे भैया ! यह देश ऐसा ही है की पहले यहाँ लोग भोजन करते है, बाद मे अन्य काम करते हैं, । अगर कोई पड़ोस मे हो तो देख आऊ।
» वह ऐसा कहकर देखने चली गई परंतु उसे कोई ऐसा व्यक्ति नहीं मिला, जिसने भोजन न किया हो अतः वह एक कुम्हार के घर गई जिसका लड़का बीमार था। उसे मालूम हुआ की उनके यहाँ तीन रोज से किसी ने भोजन नही किया है। रानी ने अपने भाई की कथा सुनने के लिए कुम्हार से कहा वह तैयार हो गया।
» राजा ने जाकर बृहस्पति वार की कथा कही जिसको सुनकर उसका लड़का ठीक होगया, अब तो राजा की प्रशंसा होने लगी। एक रोज राजा ने अपनी बहिन से कहा की हे बहिन! हम अपने घर को जाएंगे । तुम भी तैयार हो जाओ । राजा की बहिन ने अपनी सास से कहा। सास ने कहाँ हाँ चली जा। परंतु अपने लड़कों को मत ले जाना क्योंकि तेरे भाई के कोई औलाद नहीं है।
» बहिन ने अपने भैया से कहा: हे भईया ! मै तो चलूँगी पर कोई बालक नही चलेगा ,तब तुम ही क्या करोगी । बड़े दुःखी मन से राजा अपने नगर को लौट आया राजा ने अपनी रानी कहा: हम निरवंशी हैं। हमारा मुहँ देखने का धर्म नही है, और कुछ भोजन आदि नही किया । और कुछ भोजन आदि नही किया।
» रानी बोली :हे प्रभु! बृहस्पति देव ने हमे सब कुछ दिया है, वह हमे औलाद अवश्य देंगे। उसी रात को बृहस्पति देव ने राजा से स्वप्न मे कहा: हे राजा उठ। सभी सोच त्याग दे, तेरी रानी गर्भ से है। राजा की यह बात सुनकर बड़ी खुशी हुई।
» नवे महीने मे उसके गर्भ से एक सुंदर पुत्र पैदा हुआ। तब राजा बोला : हे रानी! स्त्री बिना भोजन के रक सकती है, पर बिना कहे नही रह सकती । जब मेरी बहिन आवे तुम उससे कुछ कहना मत। रानी ने सुनकर हाँ कर दिया । जब राजा की बहिन ने यह शुभ समाचार सुना तो वह बहुत खुश हुई तथा बधाई लेकर अपने भाई के यहाँ आई, तभी रानी ने कहा : घोडा चढ़कर तो नही आई , गधा चढ़ी आई।
» राजा की बहिन बोली: भाभी मै इस प्रकार न कहती तो तुम्हें औलाद कैसे मिलती। बृहस्पति देव ऐसे ही है, जैसी जिसके मन मे कामनाएं है, सभी को पूर्ण करते हैं, जो सदभावनापूर्वक बृहस्पति वार का व्रत करता है एवं कथा पढ़ता है, अथवा सुनता है, दूसरों को सुनाता है, बृहस्पति देव उसकी सभी मनोकामना पूर्ण करते हैं।
» भगवान बृहस्पति देव उसकी सदैव रक्षा करते हैं, संसार मे जो मनुष्य सदभावना से भगवान जी का पूजन व्रत सच्चे हृदय से करते है। जैसी सच्ची भावना से रानी और राजा ने उनकी कथा का गुणगान किया तो उनकी सभी इच्छायें बृहस्पतिदेव जी ने पूर्ण की थी। इसलिए पूर्ण कथा सुनने के बाद प्रसाद लेकर जाना चाहिए । हृदय से उसका मनन करते हुए जयकारा बोलना चाहिए ।
।। बोलो बृहस्पतिदेव की जय । भगवान विष्णु की जय ।।
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।। बृहस्पतिदेव की कथा ।।
» प्राचीन काल मे एक ब्राह्मण रहता था, वह बहुत निर्धन था। उसके कोई संतान नहीं थी। उसकी स्त्री बहुत मलीनता के साथ रहती थी। वह स्नान ना करती , किसी देवता का पूजन ना करती इससे ब्राह्मण देवता बहुत ही दुखी थें । बेचारे बहुत कुछ कहते थें । किंतु उसका कुछ भी परिणाम ना निकला । भगवान की कृपा से ब्राह्मण की स्त्री केे कन्या रूपी रत्न पैदा हुआ । कन्या बड़ी होने पर प्रातः स्नान करके विष्णु भगवान का जाप व बृहस्पतिवार का व्रत करने करने लगी ।
» अपने पूजन पाठ को समाप्त करके विधालय जाती तो अपनी मुट्ठी में जौ भरके ले जाती , और पाठशाला केे मार्ग में डालती जाती । तब ये जौ स्वर्ण केे हो जाते , लौटते समय उनको बीनकर घर ले आती थीं । एक दिन वह बालिका सूप मे उस सोने केे जौ को फटक कर साफ कर रही थीं । कि उसके पिता नें देख लिया और कहा – हे बेटी ! सोने केे जौ कए लिए सोने का सूप होना चाहिए ।
» दूसरे दिन बृहस्पतिवार था । इस कन्या ने व्रत रखा और बृहस्पतिदेव से प्राथना करके कहा – मैंने आपकी पूजा सच्चे मन से की हो तो मेरे लिए सोने का सूप दे दो । बृहस्पतिदेव ने उसकी प्राथना स्वीकार कर कर ली । रोजाना की तरह वह कन्या जौ फैलती हुई जाने लगी , जब लौटकर जौ को बिन रही थीं । तो उसे बृहस्पतिदेव की कृपा से सोने का सूप मिला । उसे वह घर ले आई । और उसमे जौ साफ करने लगी । परंतु उसकी माँ का वही ढंग रहा ।
» एक दिन की बात हैं । कि वह कन्या सोने कए सूप में जौ साफ कर रही थीं । उस समय उस नगर का राजपुत्र वहाँ से होकर निकला । इस कन्या और उसके कार्य को देखकर वह बहुत मोहित हो गया । तथा अपने घर आकर भोजन व जल त्यागकर उदास होकर लेट गया ।
» राजा को इस बात का पता लगा तो अपने प्रधानमंत्री केे साथ अपने पुत्र के पास गए , और बोले – हे बेटा ! तुम्हें किस बात का कष्ट हैं । किसी ने अपमान किया हैं । अथवा और कोई कारण हो सो वह कहो , मै वही कार्य करूंगा जिसमे तुम्हें प्रसन्नता हों । अपने पिता की राजकुमार ने बातें सुनी तो वह बोला – मुझे आपकी कृपा से किसी बात का दुख नही हैं । किसी ने मेरा अपमान भी नही किया ।
» परंतु मैं उस लड़की से विवाह करना चाहता हूँ । जो सोने कए सूप में जौ साफ कर रही थीं । यह सुनकर राजा आश्चर्य में पड़ा और बोला – हे बेटा इस तरह की कन्या का पता तुम्हीं लगाओ । मैं उसके साथ तेरा विवाह अवश्य ही करवा दूँगा ।
» राजकुमार नें उस लड़की कए घर का पता बताया । तब मंत्री उस लड़की कए घर गए , और ब्राह्मण देवता को सभी हाल बतलाया । ब्राह्मण देवता राजकुमार केे साथ अपनी कन्या का विवाह करने कए लिए तैयार हो गए तथा विधि – विधान कए अनुसार ब्राह्मण की कन्या का विवाह राजकुमार केे साथ हो गया ।
» कन्या केे घर से जाते ही पहले केे भांति उस ब्राह्मण देवता केे घर में गरीबी का निवास हों गया । अब भोजन केे लिए भी अन्न बड़ी बड़ी मुश्किलों से मिलता था । एक दिन दुखी होकर ब्राह्मण देवता अपनी पुत्री कए पास गए बेटी नें पिता की दुखी अवस्था को देखा , और अपनी माँ का हाल पूछा । तब ब्राह्मण ने सभी हाल कहा । कन्या नें बहुत सा धन देकर अपने पिता को विदा कर दिया । इस तरह ब्राह्मण का कुछ समय सुखपूर्वक व्यतीत हुआ ।
» लेकिन कुछ दिनों बाद फिर से वही हाल हो गया । ब्राह्मण फिर अपनी कन्या केे यहाँ गया । और सारा हाल कहा तो लड़की बोली – हे पिताजी ! आप माताजी को यहाँ लिवा लाओ । मैं उन्हे विधि बता दूँगी । जिससे गरीबी दूर हो जाए । वह ब्राह्मण देवता अपनी स्त्री को साथ लेकर आये तो लड़की अपनी माँ को समझाने लगी – हे माँ ! तुम प्रातः काल प्रथम स्नानादि करके विष्णु भगवान का पूजन करों तो सब दरिद्रता दूर हो जावेगी ।
» परंतु उसकी माँ नें उसकी एक भी बात नही मानी । और प्रातः काल उठकर अपनी पुत्री केे बच्चों की झूठन को खा लिया । यह सुनकर उसकी पुत्री को भी बहुत गुस्सा आया । और एक रात को कोठरी से सभी समान निकाल दिया और अपनी माँ को उसमे बंद कर दिया ।
» फिर प्रातः काल उन्हे निकाला तथा स्नानादि कराके पाठ करवाया तो उसकी माँ की बुद्धि ठीक हो गई । और फिर प्रत्येक बृहस्पतिवार को व्रत रखने लगी । इस व्रत कए प्रभाव से उसके माँ बाप बहुत ही धनवान और पुत्रवान हो गए और बृहस्पतिजी केे प्रभाव से इस लोक केे सुख भोगकर स्वर्ग को प्राप्त हुए ।
।। बोलो विष्णु भगवान जी की जय ।। बोलो बृहस्पतिदेव भगवान जी की जय ।।