सिकंदर महान का इतिहास – History Of Alexander The Great । Story Of Alexander The Great । Story From History ।

सिकंदर महान का इतिहास - History Of Alexander The Great । Story Of Alexander The Great । Story From History । Hindirama.com

सिकंदर महान का इतिहास – History Of Alexander The Great

» विश्व के इतिहास मे कई महान राजा हो गए । लेकिन एक ही ऐसा महान राजा हुवा था । जो पूरे विश्व को जीतने के लिए निकला था। जिसे हम सबही सिकंदर के नाम से जानते हैं, हा जी एक ऐसा सम्राट जिसके ऊपर ये कहावत भी फिट बैठती  है, – जो  जीता वही सिकंदर , और , हारी बाजी को जिसे जितना आए वही सिकंदर ही दोस्तों कहलाता है, हारी बाजी को जितना जिसे आता है।

» सिकंदर का पूरा नाम अलेक्जेंडर था। लेकिन पूरी दुनिया सिकंदर के नाम से जानती है । आज हम सिकंदर का इतिहास  बताएंगे । सिकंदर भारत कब आया था यहा इससे संबंधित सभी जानकारी बताएंगे । क्योंकि कहा जाता है, की भारत मे सिकंदर की हार हुई थी ।

» लेकिन धोखे से उसे महान बताने के लिए उसके हार की कहानी को जीत मे लिखा गया है , इसमे विरोधाभास है, जिस कारण से उसे कुछ लोग महान और टों कुछ लोग क्रूर शासक के रूप मे जानते है।

» सिकंदर ने आधी से भी ज्यादा दुनिया को जीत लिया था । उसे एलेक्जेंडर तृतीय तथा एलेक्जेंडर मेसएडोनियन नाम से भी जाना जाता है । सिकंदर ने मृत्यु तक पूरी दुनिया को जीत लिया था। उसकी सारी माहिती प्राचीन ग्रीक के सारे व्यक्ति के पास थी। इसलिए सिकंदर को विश्वविजेता भी कहा जाता है । उसके नाम के साथ महान या दी ग्रेट  भी लगाया जाता हैं। इतिहास मे वह सबसे कुशल और यशस्वी सेनापति माना गया है।

सिकंदर का जीवन परिचय 

• पूरा नाम – सिकंदर महान / अलेक्जेंडर

• अन्य नाम – अलक्ष्येंद्र , एलेक्जेंडर तृतीय , एलेक्जेंडर मेसेडोनीयन

• जन्म दिन – 20 जुलाई 356 ईसा पूर्व

• जन्म स्थान – पेला, मैसेडोन , यूनान

• पिता – फिलिप द्वितीय

•  माता – ओलिंपिया

•  सौतेली माता – कलेओप्टेरा

• पत्नी – रोक्जाना , बैक्टीरिया , स्टरैटेयरा द्वितीय

•  नाना – निओप्टोलेमस

•  शिक्षकों के नाम – दी स्टर्न लियोनिडास ऑफ एपीरुस , लाईसीमेक्स , ऐरिसटोटल ( अरस्तू)

• विशेषता – अलेक्जेंडर बचपन से ही एक अच्छा घुड़सवार और योद्धा था।

• शौक – गणित , विज्ञान और दर्शन शास्त्र मे रुचि

•  घोडे का नाम –  बुसेफेल्स

•  जीते हुए देश – एथेंस , एशिया माइनर , पेलेस्टाइन और पूरा पर्सिया और सिंधु के पहले तक का तब कअ भारत

•  मृत्यु – 13 जून 323 ईसा पूर्व

•  मृत्यू का कारण – मलेरिया

• मृत्यु का स्थान – बेबीलोन

»  विवाद – अलेक्जेंडर ने एक राजा के तौर पर बहुत से युद्ध किये और देश जीते लेकिन अपने पिता की दूसरी शादी पर उनका शाही दरबार मे पिता और अपनी सौतेली माँ के चाचा से विवाद हो गया ।

सिकंदर का जन्म एवं प्रारम्भिक जीवन

» सिकंदर का जन्म 20 जुलाई , 356 ईसा पूर्व मे प्राचीन नेपोलियन की राजधानी पेला मे हुआ था , । सिकंदर , के पिता का नाम फिलिप द्वितीय था जो की मेकडोनीय और ऑलम्पिया के राजा थे और उनकी माता का नाम ऑलम्पिया था ।  ऐसा कहा जाता है ।

» की वे एक जदूगरनी थी जिन्हे सांपों के बीच रहने का शौक था। सिकंदर की माता ऑलम्पिया इसके बगल वाले राज्य एपीरुस की राजकुमारी थी। सिकंदर के नाना का नाम , राजा निऑप्टोलेमस था। सिकंदर की एक बहन भी थी, जिसका नाम क्लियोपैट्रा था। इन दोनों की परविरश पेला के शाही दरबार मे हुई थी ।

सिकंदर की शिक्षा  

» 12 वर्ष की उम्र मे सिकंदर ने घुड़सवारी बहुत अच्छे से सीख ली थी। सिकंदर ने अपनी आरंभिक शिक्षा अपने संबंधी दी स्टर्न लियोनिडास ऑफ ऐपीरुस से प्राप्त की थी। फिर किलिप ने सिकंदर को गणित , घुड़सवारी और धनुर्विध्या सब कुछ समझाने के लिए नियुक्त किया था। लेकिन वो सिकंदर के उग्र एवं विद्रोही स्वभाव को नही सम्भाल पाए थे।

» सिकंदर के दूसरे शिक्षक लाईसीमेक्स थे। उन्होंने सिकंदर के विद्रोही स्वभाव पर अपना काबू किया था । शिक्षक लाईसिमेक्स ने सिकंदर को युद्ध की शिक्षा अच्छे से अच्छी दी थी । सिकंदर जब 13 साल के हुए तब फिलिप ने सिकंदर के लिए बहुत ही ज्ञानी शिक्षक ऐरिसटोटल की नियुक्ति की तब ऐरिस्टोटल भारत मे अरस्तू से जाना जाता था ।

» अरस्तू ने सिकंदर को आगे के तीन साल तक साहित्य की शिक्षा  प्रदान की थी। अरस्तू ने सिकंदर को वाक्पटुता भी प्रदान की अलावा सिकंदर को रुझान विज्ञान , दर्शन -शास्त्र और मेडिकल के क्षेत्र मे भी ज्ञात कराया था। इन सभी विद्या  का सिकंदर के जीवन मे बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है, ।

सिकंदर का युद्ध कौशल 

» 12 वर्ष की उम्र मे सिकंदर ने घुड़सवारी बहुत  अच्छे से सिख ली थी और ये उन्होंने अपने पिता को तब दिखाई , जब सिकंदर ने एक प्रशिक्षित घोडे ब्यूसेफेलस को काबू मे किया , जिस पर और कोई नियंत्रण नही कर पाया था। पहले तो वह सिकंदर के काबू से बाहर रहा लेकिन अंत मे सिकंदर ने उस पर ब काबू पा लिया । सिकंदर के पिता को को उसपे गर्व हुआ था ।

» उसके बाद सिकंदर ने अपने जीवन के कई युद्धों मे बुसेफेल्स की सवारी की, और अंत तक वों घोडा उनके साथ ही रहा । 340 ईसा पूर्व मे जब सिकंदर जब 16 वर्ष का था तो उसका कौशल को देख उसे मेक्डोनिया राज्य पर अपनी जगह शासन करने के लिए छोड़ दिया था ।

» जैसे – जैसे मेक्डोनियन आर्मी ने थ्रेस मे आगे बढ़ना शुरू किया, मेडी की थ्रेशीयन जनजाति ने मेक्डोनिया के उत्तर – पूर्व सीमा पर विद्रोह कर दिया , जिससे देश के लिए खतरा बढ़ गया । सिकंदर ने सेना इकट्ठी की और  इसका इस्तेमाल विद्रोहियों के सामने शुरु किया, और तेजी से कारवाही करते हुए मेडी जनजाति को हरा दिया , और इनके किले कब्जा कर लिया

» और इसका नाम उसने खुद के नाम पर ऐलेक्जेंड्रोपोलिस रखा। 2 वर्ष बाद 338 ईसा पूर्व मे फिलिप ने मेकडोनीयन आर्मी मे सीनियर जनरल की पोस्ट दे दी। इस युद्ध मे ग्रीक की करारी हार हुई और  इससे सिकंदर का नाम पूरे विश्व मे होने लगा।

 

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सिकंदर का राज्यभिषेक   

» 336 ईसा पूर्व मे सिकंदर की बहन ने मोलोस्सियन के राजा से शादी  की , इसी दौरान एक महोतसव मे पौसानियास ने सिकंदर के पिता राजा फिलिप द्वितीय की हत्या कर दी। अपने पिता की मृत्यु के समय सिकंदर 19 वर्ष का था और उसमे सत्ता हासिल करने का जोश और जुनून चरम पर था ।

» उसने मेकडोनीयन आर्मी के शस्यागार के साथ जनरल  और फौज को इकट्ठा किया , जिनमे वो सेना भी शामिल थी जो केरोनिया से लड़ी थी । सेना ने सिकंदर को सामंती राजा घोषित किया और उसकी राजवंश कए अन्य वारिसों की हत्या करने मे मदद की।

» ऑलिम्पिया ने भी अपने पुत्र की इसमे मदद की, उसने फिलिप और क्लेओपटेरा की पुत्री को मार दिया और क्लेओपटेरा को आत्महत्या करने के लिए मजबूर कर दिया । सिकंदर के मेक्डोनिया के सामंती राजा होने के कारण उसे कोरींथियन लीग पर नियंत्रण ही नही मिला बल्कि ग्रीस के दक्षिणी राज्यों ने फिलिप द्वितीय की मृत्यु का जश्न मनाना भी शुरू कर दिया और उन्होंने विभाजित और स्वतंत्र अभिव्यक्ति शुरू की। सिकंदर के सत्ता मे आते ही उसने पूरी दुनिया मे अपना दबदबा कायम करलिया था।

» इसमे सिकंदर की माँ ओलंपिया ने सिकंदर की मदद की। सम्राट बनने के बाद सिकंदर ने अपने पिता की इच्छा को पूरा करने कए लिए एक विशाल सेना का गठन किया और अपने साम्राज्य को बढ़ाने के लिए सिकंदर ने यूनान  के कई भागों पर अधिकार कर अपनी जीत दर्ज की।

» इसके पश्चात सिकंदर एशिया माइनर को जितने के लिए निकल पड़ा। इस युद्ध अभियान मे सिकंदर ने सीरिया को पराजित करके मिस्त्र ,  इरान , मेसोपोटामिया , फिनिशिया जूदआ , गाझा , और बॉक्ट्रिया प्रदेश को भी पराजित करके अपने कब्जे मे लिए लिया।

» उस समय सभी राज्य फारसी साम्राज्य का  हिस्सा हुआ करता था जो सिकंदर के साम्राज्य का लगभग 40 गुना था। इसी दौरान सिकंदर ने 327 ईसा पूर्व मे मिस्त्र मे एक नए शहर की स्थापना की। जिसका नाम पर आलेक्जेंड्रिया रखा और यहाँ एक विश्व विद्यालय का भी निर्माण करवाया । सिकंदर ने अपनी विशाल सेना और कुशल सेना नेतृत्व फारस के राजा डेरीयस तृतीय को अरबेला कए युद्ध मे हराकर स्वयं वहाँ का राजा बन गया।

» फ़ारस की राजकुमारी रुकसाना से विवाह करके सिकंदर ने जनता को भी अपनी ओर कर लिया । इसके अलावा सिकंदर ने कई अन्य जगहों पर अपनी जीत हासिल की। इसमे भारत का भी कुछ हिस्सा शामिल था ।

 सिकंदर की शक्ति का एकीकरण 

» राजा सिकंदर को राजपाट संभालने को दिया गया। तभी से अपने प्रतिद्वंद्वियो को एक एक करके मारने लगा था सिकंदर ने उसकी शुरुआत अपने चचेरे भाई अमिनट्स चौथे को मरवा कर की। सिकंदर ने उसने  लैंकेस्टिस क्षेत्र के दो मैसेड़ोनियन राजकुमारों को भी मौत के घाट उतार दिया था। माना की तीसरे , अलेक्जेंडर लैंकेस्टिस को उन्होंने बक्स दिया था।

» ओलंपियस ने क्लियोपेट्रा इरीडीइस और यूरोप को, जोकि फिलिप की बेटी थी, उसको भी जिंदा जला दिया था। जब अलेक्जेंडर को इस बारे मे पता चला, तो वह गुस्सा हुए थे। सिकंदर ने अतलूस की हत्या करने का भी आदेश दिया था । वह क्लियोपेट्रा के चाचा और एशिया अभियान की सेना का अग्रिम सेनापति था।

» अटलूस डेमोथेन्स एथेंस मे से अपने गुनहगार होने की संदेह के विषय मे चर्चा करने गया था । अटलूस बहुत बार सिकंदर का घोर अपमान कर चुका था, । क्लियोपेट्रा की हत्या के बाद , सिकंदर उसे जीवित छोड़ने के लिए बहुत खतरनाक मानता था। सिकंदर ने ऐहिर्डियस को छोड़ दिया, लेकिन ऑलम्पियस द्वारा जहर देने के कारण मानसिक रूप से विकलांग हो चुका था, ।

» फिलिप की मौत की खबर से अनेक राज्यों मे विद्रोह होने लगा । उसमे थिब्स , एथेंस थिसली और मैसेडोन के उत्तर मे थ्रेसियन शामिल थे। पुत्र सिकंदर को जब विद्रोह की खबर मिली तो तत्काल उसके ऊपर ध्यान दिया। सिकंदर ने दिमाग लगाकर, कूटनीति का इस्तेमाल करने की बजाय सिकंदर ने 3000 मैसेडोनीयन घुड़सवार सेना का गठन कर लिया। और थिसली की तरफ दक्षिण मे कूच करने लगा ।

सिकंदर का विजय अभियान  

» सिकंदर जब अपने उत्तरी अभियान को खत्म करने के करीब था, तब उसे यह खबर मिली की ग्रीक राज्य के शहर थेबेस ने मेकडोनीयन फौज को अपने किले से भगा दिया है। अन्य शहरों के विद्रोह के डर से सिकंदर ने अपनी सेना के साथ दक्षिण का रुख किया। इन सब घटनाक्रमों के दौरान ही सिकंदर के जनरल परनियन ने एशिया की तरफ अपना मार्ग बना लिया है। अलेक्जेंडर और उसकी सेना थेबेस मे इस तरह से पहुंचीं की वहाँ की सेना को आत्मा – रक्षा तक का मौका नही मिला ।

» वहीं सिकंदर से एथेंस के साथ ग्रीक के  अन्य शहर भी उसके साथ संधि करने को तैयार हो गए । 334 ईसा पूर्व मे सिकंदर ने एशियाई अभियान के लिए नौकायन शुरू किया और उस वर्ष की वसंत मे ट्रॉय मे पहुँचा । सिकंदर ने ग्रेनसीयस नदी के पास पर्शियन राजा डारियस तृतीय की सेना का सामना किया ।

» उन्हे बुरी तरह से  पराजित किया । 333 ईसा पूर्व की गर्मियों मे सिकंदर की सेना और  डारियस की सेना के मध्य एक बार फिर से युद्ध हुआ । हालांकि सिकंदर की सेना मे ज्यादा सैनिक होने के कारण उसकी फिर से एक तरफा जीत हुई । और सिकंदर ने  खुद को पर्सिया का राजा घोषित किया।

» सिकंदर का अगला लक्ष्य इजीप्ट को जितना था । गाजा की घेराबंदी करके सिकंदर ने आसानी से इजीप्ट पर कब्जा कर लिया। 331 ईसा पूर्व मे उसने अलेक्जांद्रिया शहर का निर्माण किया। और ग्रीक और संस्कृति और व्यापार के लिए उस शहर को केंद्र बनाया । उसके बाद सिकंदर ने गौग्मेला के युद्ध मे पर्शिया को हरा दिया। पर्शियन आर्मी की हार के साथ ही सिकंदर बेबीलोन का राजा , एशिया का राजा  और दुनिया के चारों कोनों मे का राजा बन गया ।

» सिकंदर का अगला लक्ष्य पूर्वी ईरान था । जहाँ उसने मेकडोनीयन कालोनी बनाई और अरिमजेस मे 327 किलोमीटर पर अपना कब्जा कर लिया । प्रिंस ओकजियार्टेस को पकड़ने के बाद प्रिंस की बेटी रोक्जाना से विवाह   कर लिया । उसका विजय अभियान कई वर्षों तक नही टूट पाया था।

ग्रैनिकस की लड़ाई   

» यह 334 ईसा पूर्व मे आधुनिक पश्चिमी तुर्की मे लड़ा गया था । सिकंदर ने पश्चिमी तुर्की के तट पर आगे बढ़ते हुए 20000 फारसी घुड़सवारों की एक सेना को हराया , शहरों को जीत लिया  और फारसी नौसेना को ठिकानों से वंचित कर दिया।

इस्सुस की लड़ाई   

» यह महत्वपूर्ण लड़ाई 333 ईसा पूर्व मे दक्षिणी तुर्की के प्राचीन शहर इस्सुस के पास लड़ी गई थी। फरसियों का नेतृत्व डेरीयस ने किया था । सिकंदर की सेना फारसी सेना के लिए बहुत मजबूत साबित हुई और अंततः डेरीयस अपनी सेना के साथ भाग गया।

मिस्त्र का फिरौन की लड़ाई 

» सिकंदर भूमध्यसागर के पूर्व मे दक्षिण की ओर चला गया और फारसियों को उनके नौसेनीक ठिकानों से वंचित कर दिया। हालांकि , कई शहरों ने आत्मसमर्पण कर दिया, जैसे टायर , जो आधुनिक समय के लेबनान मे एक द्वीप पर था, ने सिकंदर को उस पर कब्जा करने के लिए मजबूर किया।

» सिकंदर ने मिस्त्र मे प्रवेश किया जो 332 पूर्व मे गाजा पर कब्जा करने के बाद दो शताब्दियों तक फारसी शासन के अधीन था । उसने मिस्त्र के उत्तरी तट पर अलेक्जेंड्रीया शहर की स्थापना की। सिकंदर ने मिस्त्र की राजधानी मेमफिस मे खुद को फिरौन के रूप मे ताज पहनाया था और एक पारंपरिक समारोह के माध्यम से खुद को मिस्त्र के शासकों की पंक्ति से जोड़ने की कोशिश की थी।

गौगामेला की लड़ाई   

» यह 331 ईसा पूर्व मे उत्तरी इराक मे ऐरिबल के पास लड़ा गया था। डेरीयस को पूरे राज्य से सैनिक मिले।  फारसी साम्राज्य की उत्तरी सीमाओ के सिथियन घुड़सवार और शायद आधुनिक पाकिस्तान के भारतीय सैनिकों ने सिकंदर का  सामना किया। यह वर्चस्व का युद्ध बन गया और डेरीयस भाग गया। उस समय से, फारसी सेना का पतन शुरू हो गया।

सिकंदर का भारत पर आक्रमण 

» यूनानी शासक सिकंदर महान ने भारत पर 326  ईसा पूर्व आक्रमण किया। भारत पर आक्रमण करने का मूल कारण धन की प्राप्ति थी। इस समय भारत छोटे-  छोटे गणराज्यों मे बटां हुआ था।

» सिकंदर खैबर दर्रे से होकर भारत पहुँचा और उसने पहला आक्रमण तक्षशिला के राजा अंभि ने कुछ समय बाद सिकंदर के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और सिकंदर को सहायता देने का वादा किया।

» इस समय तक्षशिला मे चाणक्य एक आचार्य के रूप मे कर कर रहे थे। इनसे ये विदेशी हमले देखे ना गए इसलिए चाणक्य ने इसके विरुद्ध मे लड़ने के लिए बहुत से  राजाओ के पास गए लेकिन आपसी मतभेद के कारण कोई भी सिकंदर के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार नही हुआ ।

» इस समय भारत मे मगध  का नन्द वश जिसका राजा घनानन्द के पास भी गया लेकिन घनानन्द ने चाणक्य का अपमान करके उसे महल से निकाल दिया। जिसकाा परिणाम आगे चलकर घनानन्द को उठाना पड़ा ।

» 328 ईसा पूर्व मे सिकंदर भारत मे पोरस की सेना से भीड़ा , दोनों की सेना ने अपना पूरा जोर लगा दिया। आखिर मे सिकंदर की जीत हुई। सिकंदर पोरस के पराक्रम से बहुत प्रभावित हुआ। और उसे वापिस राजा बना दिया । सिकंदर ने सिंधु के पूर्व की तरफ बढ़ने की कोशिश की, लेकिन उसकी सेना ने आगे बढ़ने से मना कर दिया और वापिस लौटने को कहा ।

» 325 ईसा पूर्व मे सिकंदर ने ठीक होने के बाद अपनी सेना के साथ उत्तर की तरफ पर्शियन खाड़ी के  सहारे का रुख किया, उस समय बहुत से लोग बीमार पड गए थे ,  कुछ चोटिल हो गए, तो कुछ की मृत्यु हो गई । अपने नेतृत्व और प्रभाव को बनाए रखने के  लिए उसने पर्शिया के प्रबद्ध लोगों को मेक्डोनिया के प्रबुद्ध लोगों से मिलाने का सोचा , जिससे एक शासक वर्ग बनाया जा सके । इसी क्रम मे उसने सुसा मे उसने मेक्डोनिया के बहुत से लोगों को पर्शिया  की राजकुमारीयो से शादी करवाई।

» सिकंदर ने जब 10  हजार की संख्या पर्शियन सैनिक अपनी सेना मे नियुक्त कर लिए, तो उसने बहुत से मेक्डोनीया सैनिकों को निकाल दिया। इस कारण सेना का बहुत बड़ा हिस्सा उससे खफा हो गया और उन्होंने पर्शियन संस्कृति को अपनाने से भी मना कर दिया। सिकंदर ने तब 13 पर्शियन सेना नायकों को मरवाकर मेक्डोनिया के मध्य संबंधों को मधुर बनाने के लिए किया जाने वाला आयोजन सफल नही हो सका। सिकंदर की टक्कर के राजा सिर्फ पोरस ही थे । जिन्होंने सिकंदर को अपनी हार सामने याद दिला दिया था।…..

सिकंदर और भारत के राजा पोरस से युद्ध     

» तक्षशिला के राजा अमभी को हराकर सिकंदर झेलम और चिनवा नदी की ओर बढ़ा , और झेलम  नदी के किनारे ही सिकंदर और पोरस या पेरू के बीच एक बहुत ही प्रसिद्ध युद्ध लड़ा गया। जिसे हाइडेसपीज का युद्ध या वितस्ता का युद्ध कहा जाता है। इस युद्ध मे पोरस की हार हुई।

» झेलम नदी के किनारे सिकंदर और पोरस के बीच भयानक युद्ध की शुरुआत हुई। पहले दिन पोरस ने सिकंदर का डटकर सामना किया । लेकिन मौसम के खराब होने के कारण पोरस की सेना कमजोर पड़ने लगी। यह देख कर सिकंदर ने पोरस को  आत्मसमर्पण करने को कहा , लेकिन पोरस ने हार नही  मानी और युद्ध  करते रहे। पोरस जानते थे की उनकी हार निश्चित थी, लेकिन उन्हे  किसी की अधीनता स्वीकार नही थी।

» राजा पोरस ने अपने दिमाग और बहादुरी से सिकंदर के साथ लड़ाई की। उसके काफी संघर्ष और कोशिशों के बाद भी राजा पोरस को हार का सामना करना पड़ा था। इस महायुद्ध के दौरान सिकंदर की सेना को भी भारी नुकसान हुआ था । बहुत सारे महान राजाओ का कहना है। की राजा पोरस बहुत ही शक्तिशाली शासक माना जाता था। राजा पोरस का पंजाब मे झेलम से लेकर चिनाव नदी तक राजा पोरस का राज्य शासन फैला हुआ था।

» सिकंदर और राजा पोरस के युद्ध मे पोरस पराजित हुआ था । लेकिन सिकंदर को पोरस को पोरस बहादुरी ने बहुत ही प्रभावित किया था। क्योंकि राजा पोरस ने जिस तरह लड़ाई लड़ी थी उसे देख सिकंदर दंग रह गए  थे । इस युद्ध के बाद सिकंदर ने राजा पोरस से दोस्ती कर ली। उसे उसका राज्य के साथ – साथ कुछ नए इलाके भी दिए थे , आखिर कर सिकंदर को कूटनीतिज्ञ समझ थी।

» उसी की वजह से आगे किसी तरह की मदद के लिए उसने राजा पोरस से व्यवहारिक तौर पर दोस्ताना संबंध जारी रखे थे। सिकंदर की सेना ने छोटे हिन्दू गणराज्यों के साथ भी लड़ाई लड़ी की थी, सिकंदर की कठ जाति के लोग अपने साहस के लिए जानी जाती थी।

» यहाँ से वह व्यास नदी तक पहुँचा , परंतु वहाँ से उसे वापस लौटना पड़ा। व्यास नदी के उस पार नंदवंशी के राजा के पास 20 हजार घुड़सवार सैनिक, 2 लाख पैदल सैनिक , 2 हजार 4 घोडे वाले रथ और करीब 6 हजार हाथी थे। उसके सैनिक मगध के नन्द शासक की विशाल सेना का सामना करने और व्यास नदी को पार करने से इनकार कर दिया । तभी सिकंदर को फ़ारस के विद्रोह का समाचार मिला, और वह उसे दबाने के लिए वापस चल दिया ।

» सिकंदर ने अपने कार्यकाल मे ईरान, सीरिया , मिस्त्र , मेसोपोटामिया , फिनिशिया , जेदेआ ,गाझा, बैक्ट्रिया और भारत मे पंजाब तक के प्रदेश पर विजय हासिल की थी। सिकंदर ने सबसे पहले

Author: Hindi Rama

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