छठी मैया की कहानी – छठी मैया कौन देवी है ? – Story Of chhathi Maiya । Chhathi Maiya Ki Kahani ।

छठी मैया की कहानी - छठी मैया कौन देवी है ? - Story Of chhathi Maiya । Chhathi Maiya Ki Kahani । Hindirama.com

छठी मैया की कहानी – छठी मैया कौन देवी है ? – Story Of chhathi Maiya

» प्रत्येक वर्ष चैत्र मास व कार्तिक मास की षष्ठी तिथि को पूरे उत्तर भारत मे छठ पूजा का पर्व बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह चार दिनों का पर्व होता है जिसमे दूसरे दिन के सूर्यास्त से लेकर चौथे दिन के सर्वोदय तक व्रती को निर्जला व्रत रखना होता है।

» यह एक बहुत कठोर व्रत होता है क्योंकि इस दौरान व्रत करने वाले व्यक्ति को किसी भी प्रकार का अन्न व जल को ग्रहण नही करना होता है। इस व्रत की अवधि कुल 36 घंटों का आसपास की होती है। चौथे दिन उगते  हुए सूर्य को अर्ध्य देकर ही प्रसाद ग्रहण करके व्रत समाप्त क्या जाता है व उसके बाद भोजन किया जाता है।

» मान्यता हिय की इससे दंपत्ति को संतान / पुत्र की प्राप्ति होती है या जिनके पुत्र हो चुका है उसकी आयु लंबी व स्वास्थ्य अच्छा रहता है । दरअसल इसके पीछे छठी मैया की कथा जुड़ी हुई है .।

छठी मैया की कहानी

» प्राचीन समय मे एक राजा रहता था जिसका नाम प्रियव्रत ,/प्रियवंद /था । उसकी पत्नी का नाम मालिनी था। राजा के पास सबकुछ था लेकिन उसके कोई संतान नही थी। वह केवल इसी दुःख मे रहता था । एक दिन वह अपनी पत्नी के साथ ऋषि कश्यप के पास गया व उन्हे अपनी वेदना बताई ।

» ऋषि कश्यप ने राजा के लिए पुत्र कामेष्टि यज्ञ किया व रानी को खीर खाने को दी। यज्ञ के फलस्वरूप रानी गर्भवती हो गई लेकिन जब नौ माह बाद उन्हे पुत्र प्राप्त हुआ तो वह मरा हुआ था। मृत पुत्र के जन्म लेने से राजा प्रियव्रत व रानी मालिनी बहुत कुंठित हो गए व विलाप करने लगे । इसके बाद से ही छठी मैया की कथा या छठी माता की भूमिका शुरु होती है।

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छठी मैया ने दिए दर्शन  

» अपने पुत्र  का अंतिम संस्कार करने के पश्चात राजा प्रियवंद इतने ज्यादा शोक मे थे की उनके मन मे आत्म – हत्या के विचार आने लगे । जब वे आत्म – हत्या करने जा रहे थे तो उनके सामने एक देवी प्रकट हुई । उस देवी  ने अपना नाम देवसेना बताया तथा राजा को कहा की चूंकि वे सृष्टि की मूल प्रवत्ति के छठे अंश से प्रकट हुई है इसलिए उनका एक नाम छठी भी है ।

बताई छठ व्रत की विधि 

» माता छठी ने प्रियवंद राजा को परामर्श दिया की वह निराश ना होए व उनकी पूजा करे। उन्होंने राजा को अपनी पत्नी के साथ कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को व्रत रखने व सूर्य देव की उपासना करने को कहा । राजा को छठ व्रत की पूरी विधि बताकर माता वहाँ से चली गई।

हुई पुत्र रत्न की प्राप्ति  

» देवी छठी के कहने पर राजा प्रियवंद ने अपनी पत्नी मालिनी के साथ पूरे विधि – विधान के साथ उनका व्रत किया व सूर्य देव की आराधना की। माता छठी के आशीर्वाद के फलस्वरूप रानी मालिनी पुनः  गर्भवती हो गई । इस बार उन्हे एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई जो पूर्णयता स्वस्थ्य था।

» तब से छठ व्रत की महत्ता और बढ़ गई व लोग इसे पुत्र/ संतान प्राप्ति के उद्देश्य से भी करने लगे । जिनके संतान हो चुकी है वे भी इसे अपनी संतान की लंबी आयु व अच्छे स्वास्थ्य के लिए रखते हैं। तो यह थी छठी मैया की कहानी जो पुत्र प्राप्ति से जुड़ी हुई है।

Author: Hindi Rama

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