मन के बँधक – गौतम बुद्ध नें दिया एक बड़ा ज्ञान । Buddha Story In Hindi । Buddha Moral Story In Hindi । Buddha Stories ।

मन के बँधक - गौतम बुद्ध नें दिया एक बड़ा ज्ञान । Buddha Story In Hindi । Buddha Moral Story In Hindi , Buddha Stories । by Hindi Rama

मन के बँधक – गौतम बुद्ध नें दिया एक बड़ा ज्ञान । Buddha Story In Hindi 

एक बार की बात हैं । गौतम बुद्ध अपनें कुछ शिष्यों कए साथ किसी गाँव से गुजर रहें थें । उनके ठीक आगे एक ग्वाला अपनी गाय को रस्सी से बाँधकर आगे चल रहा था । तभी चलते – चलते एक शिष्य नें बुद्ध से पूछा — गुरुजी में आपसे कुछ पूछना चाहता हूँ । जिसकी वजह से मैं कई दिनों से परेशान हूँ ।

गौतम बुद्ध बोले कहो तुम क्या कहना चाहते हों  ! ” खुद के मन की बात को बाहर निकालों ” बोलो ! शिष्य बोला  — मैं आपका शिष्य ठीक प्रकार से नहीं बन पा रहा हूँ । मुझे हमेशा बँधा हुआ महसूस होता हैं ।

क्या मेरा फैसला ठीक हैं ? कि मैं आपका शिष्य बना रहूँ ? — बहुत सारे ऐसे विचार हैं ,जिसने मुझे खुद ही अपना बँधक बना रखा हैं । जिसकी वजह से मैं आपके दिए गए ज्ञान को ठीक प्रकार से ग्रहण बिल्कुल नहीं कर पा रहा हूँ ।

⇒ तभी बुद्ध नें अपनें शिष्य को बड़े ही प्यार से समझाते हुए ! — उस ग्वाले को गाय रस्सी से बाँध कर ले जाते हुए दिखाते हैं । और कहते हैं ! ” क्या तुमनें देखा , वह गाय किस तरह उस व्यक्ति  को रस्सी से बँधक बना कर ले जा रहीं  हैं । “

शिष्य बोला ! माफ कीजिए गुरुजी — पर शायद आपको कम दिखाई दे रहा हैं । उस गाय नें नहीं , बल्कि उस व्यक्ति नें गाय  को बंधक बना रखा हैं । आप खुद देखिए , गाय के ही गले में रस्सी बँधी हैं । और रस्सी भी उस गाय की उस व्यक्ति नें कसके पकड़ रखी हैं ।

साफ – साफ यही दिख रहा हैं , कि उस व्यक्ति ने ही गाय को बँधी बना रखा हैं । शिष्य का यह जवाब सुनकर बुद्ध रुक गए ।

⇒ बुद्ध बोले ! — मैं तुम्हें यही समझाना चाहता हूँ । जो दिखाई देता हैं , सिर्फ वही सत्य नहीं होता ।

शिष्य बोला ! — लेकिन गुरुजी ” जो दिखाई देता हैं उसे ही तो सत्य कह सकतें हैं । जो दिखाई नहीं देता उसको हम कैसे पहचानें ? “

तभी बुद्ध नें तुरंत अपने झोले से एक धार वाली चीज निकाली और तेजी से भागते हुए , उस ग्वाले की ओर बढ़े , — शिष्य और ग्वाला कुछ समझ पाते उससे पहले ही बुद्ध नें उस गाय गले गले में बँधी रस्सी को तुरंत काट दी ।

रस्सी खुलते ही गाय तुरंत ही तेजी से , जंगल की ओर भागने लगी । यह देखकर ग्वाला बुद्ध पर जोर से चिल्लाया और बोला ! — यह क्या किया आपनें ? और फिर ग्वाला तेजी गाय को पकड़ने के  लिए  भागा ।

बादमे बुद्ध को ऐसे हरकत करते हुए देखकर , शिष्य उनके पास आए और कहने लगे ! — गुरुजी आपने क्यों , उस गाय की रस्सी को काट दिया ? आप तो हमें सत्य बताने वाले थें । फिर ये आपने अचानक से क्या कर दिया ?

बुद्ध बोलें ! सत्य तो मैं पहले भी कई बार तुम्हें बता चुका हूँ । लेकिन आज तुम्हें , दिखाना चाहता था , कि बँधक कौन था ? बँधक वह ग्वाला था , जिसके मन में यह डर था , कि उसकी गाय कहीं चली ना जाए । कहीं भाग ना जाए ।


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लेकिन गाय के मन में यह डर नहीं था । कि उसका मालिक चला जाएगा । गाय कहीं भी चली जाएगी , जंगल में जाकर कुछ भी खा लेगी , कहीं भी सो जाएगी , उसके मन में कोई भय नहीं ।

लेकिन ग्वाला गाय कए दूध से अपना और अपने परिवार का पेट भरता हैं । और सुबह – शाम वो उसे खूटे से कसकी बाँध कर रखता हैं ।  इसलिए उसे गाय के कहीं  जाने का भय हमेशा रहेगा । और गाय निर्भय रहती हैं । उसे जो मर्जी ले जाए या बेच भी दे , उसे कोई फर्क नहीं पड़ता ।

आगे बुद्ध ने कहा ! — डर ही हमें बँधक में डाले रखता हैं और हमारे मन का बँधक कोई और नहीं । हम खुद ही हैं । हमें हमेशा यह डर लगा रहता हैं , कि हमसे कुछ छिन ना जाए । ” कोई हमारा पैसा खा गया तो …. मैं इसे छोड़ नहीं सकता …. मैं इसके बिना रह नहीं सकता ….  हम हमेशा इसी बँधक में रहते हैं । अरे हम क्या लेकर आए थें , कि जो हमारा कुछ छीनने वाला हैं ।

इसी डर के कारण हम ज्ञान कए मार्ग पर आगे नहीं बढ़ना चाहते । लेकिन यह सिर्फ हमारा भ्रम होता हैं । जैसे की हम ज्ञान कए मार्ग पर आगे बढ़ते हैं , तब हमें पता चलता हैं , कि हमसे कुछ छिना नहीं जा रहा हैं , जो हमारा अपना हैं । 

हम उस ठंडी हवा की तरह हैं । जिसके चलते ही सबका मन शांत और शीतल हो जाता हैं । 

  हम उस गैस के गुब्बारे की तरह हैं जिसके अंदर आसमानों में उड़ने की संभावना होती हैं । लेकिन जमीन पर बँधी वह डोर हमारा बँधन हैं । हमे इस बात का डर लगता हैं । कि हमारी नीचाई हमसे छूट जाएगी । क्योंकि नीचाई भले ही दुख हो , लेकिन वह जाना पहचान होता हैं । और ऊँचाई हमेशा अजनबी होती हैं इसलिए हमें आसमानों की ऊंचाइयों से डर लगता हैं ।     

शिष्य बोला  — गुरुजी ! मैं सब समझ चुका हूँ । मेरा बँधन स्वयं मैं खुद हूँ । आज मैं निरंतर प्रयास करूंगा कि धीरे  – धीरे अपनें मार्ग पर बिना बिना आगे बढ़ सकूँ । और अपने ज्ञान प्राप्ति की संभावना को साकार कर सकूँ । ऐसा कहकर बुद्ध और शिष्य अपने मार्ग पर आगे बढ़ गए । 

कहानी से शिक्षा 

दोस्तों ! — हमें अपने मन कए बँधन को समझना होगा , और उसे काटने का प्रयास करना होगा । बँधन हमारे हैं , तो फिर उससे निकलना भी हमें ही होगा । कुछ नया काम करने से पहले बिल्कुल भी मत डरो । बँधन तो सिर्फ हमारा मन ही हैं । इसलिए हमें उसे काबू करना भी आना चाहिए । इसलिए दोस्तों खराब काम के लिए खुद पर काबू रखकर, अच्छे काम में हमेशा आगे बढ़ो , आपको सफलता जरूर मिलेगी ।       

 

Author: Hindi Rama

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